Kharmas Mahina:  खरमास के दौरान नहीं होता कोई शुभ काम, जानें इसके पीछे की कहानी

भारतीय पंचांग में खरमास एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय है. इस दौरान सभी शुभ कामों पर प्रतिबंध होता है. ऐसा क्यों होता है इसके पीछे का कारण हमारे पुराणों में दिया गया है.

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Courtesy: Social Media

Kharmas Mahina: भारतीय पंचांग में खरमास का एक विशेष महत्व है. यह समय हर साल दो बार आता है. पहला खरमास तब होता है जब सूर्यदेव धनु राशि में प्रवेश करते हैं और दूसरा मीन संक्रांति के दौरान खरमास लगता है. खरमास की अवधि कुल एक माह की होती है. इस दौरान मांगलिक कार्यों पर प्रतिबंध लगाया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस अवधि में सूर्यदेव की गति धीमी हो जाती है और इसका असर धरती पर दिखाई देता है. 

कथाओं के अनुसार सूर्यदेव अपने 7 घोड़ों के रथ पर सवार होकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं. इन घोड़ों की गति तेज होती है जिससे सूर्यदेव का तेज और ऊर्जा धरती तक पहुंचती है. लेकिन खरमास के समय सूर्यदेव की गति में कमी आ जाती है. इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी छिपी हुई है. जिसे हम मार्कण्डेय पुराण में पढ़ सकते हैं.

मार्कण्डेय पुराण की कहानी 

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार एक बार सूर्यदेव अपने घोड़ों के रथ पर ब्रह्मांड की परिक्रमा कर रहे थे. इस दौरान उनके घोड़ों को भूख और प्यास लग गई. सूर्यदेव ने सोचा कि क्यों न उन्हें थोड़ा आराम और पानी दिया जाए, लेकिन उन्हें डर था कि ऐसा करने से रथ की गति रुक जाएगी और सृष्टि चक्र प्रभावित होगा. तभी सूर्यदेव की नजर तालाब के किनारे चर रहे दो गधों (खरों) पर पड़ी. उन्होंने सोचा कि क्यों न इन गधों को रथ में बांधकर परिक्रमा की जाए ताकि घोड़ों को आराम मिल सके. फिर सूर्यदेव ने गधों को रथ में बांध लिया. लेकिन गधे घोड़ों का मुकाबला नहीं कर सकते थे इसलिए रथ की गति धीमी हो गई. इसी कारण सूर्यदेव का तेज भी कमजोर हो गया और यही वजह है कि खरमास के दौरान सूर्य का वह सामान्य तेज धरती पर नहीं पहुंच पाता. 

मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव ने गधों को तालाब के किनारे वापस छोड़ दिया और घोड़ों को फिर से रथ में शामिल किया. इसके बाद सूर्यदेव ने अपनी पुरानी गति पकड़ ली और उनका तेज फिर से धरती पर प्रकट हुआ. यही कारण है कि मकर संक्रांति के बाद मौसम में बदलाव आता है और सूर्यदेव की ऊर्जा पुनः बढ़ जाती है.

सूर्यदेव का प्रभाव कमजोर

धार्मिक दृष्टिकोण से, खरमास के दौरान सूर्यदेव की धीमी गति का असर मानव जीवन पर भी पड़ता है. इस दौरान शादियां, नए कामों की शुरुआत, और अन्य मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं, क्योंकि इस समय सूर्यदेव का प्रभाव कमजोर होता है. एक माह के इस समय को पार करने के बाद, मकर संक्रांति के दिन से फिर से सब कुछ सामान्य हो जाता है और सूर्यदेव अपनी पूरी ऊर्जा के साथ धरती पर आते हैं.

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