Vamana Dwadashi 2023: वामन द्वादशी को वामन जयंती भी कहा जाता है. यह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को पड़ता है. कहा जाता है कि, इस दिन श्री हरि विष्णु जी ने वामन अवतार में धरती पर जन्म लिया था. ये अवतार मनुष्य रूप में विष्णु जी का पहला अवतार है. भगवान विष्णु ने इससे पहले चार अवतार पशु के रूप में लिया था जो कि मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार और नरसिंह अवतार है. भगवान विष्णु ने वामन अवतार में एक बौने के रूप में धरती पर जन्म लिया था. दक्षिण भारत में भगवान विष्णु के इस अवतार को उपेंद्र के नाम से भी जाना जाता है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन वामन देव जी ने माता अदिति और कश्यप ऋषि के घर में जन्म लिया था.
वामन द्वादशी का शुभ मुहूर्त-
वामन जयंती 26 दिसंबर 2023, मंगलवार के दिन मनाई जाएगी. द्वादशी तिथि की शुरुआत 26 सितंबर मंगलवार की सुबह 5:00 बजे से शुरू होगी. वहीं इसका समापन 27 सितंबर बुधवार को 1:45 पर होगा.
वामन द्वादशी जयंती व्रत कथा-
श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने इंद्र का देवलोक में पुनः अधिकार स्थापित करने के लिए वामन अवतार लिया था. दरअसल, असुर राजा बलि ने इंद्रलोक को हड़प लिया था. राजा बलि विरोचन के पुत्र तथा प्रह्लाद के पौत्र थे जो बड़ा ही दयालु असुर राजा था. राजा बलि अपने वचन पर हमेशा कायम रहता था. उसने अपनी तपस्या तथा ताकत के बल से त्रिलोक पर आधिपत्य स्थापित कर लिया था.
एक दिन राजा बलि सभी ब्राह्मणों को दान दे रहे थे. उसी दौरान भगवान विष्णु अपने वामन रूप में राजा बलि के पास गए. वामन भगवान ने राजा बलि से 3 पग भूमि देने का आग्रह किया. आपको बता दें कि भगवान विष्णु का वामन अवतार एक बौने ब्राह्मण के रूप में था जिनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था. वामन देव के आग्रह पर राजा बलि ने गुरु शुक्राचार्य के चेतन के बावजूद भी उन्हें वचन दे दिया. उसके बाद वामन देव ने अपना आकार इतना बड़ा कर लिया कि पहले ही कदम में पूरा भूलोक नाप लिया और दूसरे कदम में देवलोक इसके बाद ब्रह्मा ने अपने कमंडल के जल से उनके पांव धोएं.
तीसरे कदम के लिए कोई भूमि नहीं बची हालांकि राजा बलि अपने वचन के पक्के थे. इसलिए उन्होंने अपना सर उनके आगे रख दिया. लेकिन राजा बलि के दादा प्रह्लाद, विष्णु के परम भक्त थे. साथ ही वामन देव ने राजा बलि की उदारता देख प्रसन्न हो गए हैं. जिसके बाद उन्होंने असुर राज बलि को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बाली के सिर पर रख दिया जिसके बाद राजा बलि पाताल लोक में पहुंच गए.