janeu sanskar: हिंदू (Hindu)धर्म में कपास से बने जनेऊ का बहुत ज्यादा महत्व बताया गया है। अलग अलग स्थानों और युग में जनेऊ को अलग अलग नाम से पुकारा गया है। जनेऊ (janeu) को यज्ञोपवीत भी कहा जाता है और व्रतबंध भी। कई जगह पर इसे उपवीत और उपनयन भी कहा गया है। यज्ञोपवीत संस्कार यानी जनेऊ धारण करने का संस्कार (janeu sanskar) हिन्दू सनातन धर्म के 24 संस्कारों में से एक माना गया है। कहते हैं कि सतयुग और त्रेतायुग में गुरु अपने शिष्य को शिक्षा देने से पहले उसका यज्ञोपवीत संस्कार करवाते थे। जनेऊ को व्रतबंध भी कहते है और इसका मतलब है नियमो में बँध जाना, यानी शिक्षा के लिए नियमों का पालन करना। यूं तो आजकल कम ही लोग जनेऊ पहनते हैं लेकिन इसके पीछे शिक्षा और नियमो के पालन के साथ साथ अन्य कई कारण हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि जो जातक जनेऊ धारण करता है, बुद्धिमान, तेजस्वी और निरोगी होता है। ऐसी भी मान्यता कही जाती है कि जो भी कोई जनेऊ धारण करता है उसके नकारात्मक शक्तियां उसके सामन नहीं आतीं और उसे परेशान नहीं करतीं। चलिए आज जनेऊ के बारे में जानते हैं कि इसे धारण करने के क्या फायदे हैं और इसके साथ ही जनेऊ धारण करने के नियम भी जानेंगे।
जनेऊ धारण करने के फायदे
ऐसा कहा जाता है कि जो लोग जनेऊ पहनते हैं और जनेऊ से जुड़े नियमों का सच्चे मन से पालन करते हैं। उनके ऊपर जीवाणु और कीटाणु हमला नहीं करते। वो लंब समय तक निरोगी रहते हैं। दरअसल जनेऊ पहनते वक्तमल-मूत्र त्याग करते वक्त अपना मुंह बंद रखा जाता है। ऐसे में व्यक्ति गंदी जगह पर भी कीटाणुओं से बचा रहता है। जनेऊ धारण करने वाले लोग जब पानी पीते हैं या भोजन करते हैं तो बैठकर करते हैं. इससे उनकी किडनी सही रहती है। इसलि जनेऊ धारण करने के सेहत के जुड़े कई फायदे हैं।
मान्यता है कि जो व्यक्ति जनेऊ धारण करता है उसे लकवा मारने की संभावना बहुत ही कम हो जाती है। दरअसल जनेऊ धारण करने वाला लघुशंका करते समय दांत पर दांत बैठा कर रहता है, ऐसी स्थिति में लकवे की संभावना कम हो जाती है।
जब जातक नियमित तौर पर कान पर हर रोज जनेऊ रखता है तो कान कसने के कारण उसका स्मृति कोष बढ़ता रहता है। कान पर दबाव पड़ने से दिमाग याद्दास्त संबंधित नसें एक्टिव हो जाती हैं और मेमोरी वापर बढ़ जाती है।
जनेऊ पहनने वालों को दिल से जुड़े रोग और हाई ब्लडप्रेशर की आशंका कम होती है। दरअसल जनेऊ शरीर में खून के प्रवाह को कंट्रोल करने में मददगार साबित होता है। डॉक्टर कहते हैं कि जनेऊ हृदय के पास से गुजरता है औऱ इसलिए इसे धारण करने से दिल के रोगों की संभावना कम होती है।
जनेऊ जातक के शुक्राणुओं की भी रक्षा करता है। दरअसल ऐसा कहा गया है कि दाएं कान के पास से वो नसें निकलती हैं, जिनका अंडकोष और गुप्तेंद्रियों से डायरेक्ट संबंध होता है। जब जातक मूत्र त्याग के वक्त दाएं कान पर जनेऊ लपेटता है तो वे नसें दब जाती हैं, जिनसे वीर्य निकलता है। ऐसे में जातक के शुक्राणुओं की रक्षा होती है। इससे जातक के बल और पराक्रम में वृद्धि होती है।
जनेऊ पहनने के नियम
जनेऊ हर किसी को नहीं पहनाया जाता है। दरअसल वही लोग जनेऊ पहन सकते हैं जो इसकी पवित्रता का ध्यान रख पाए और इसके नियम को अपना सकें।
हर बार मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाएं कान पर चढ़ा लेना चाहिए। दरअसल ऐसा करने से जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाता है और अपवित्र नहीं होता। हाथ धोकर ही इसे छूना चाहिए।
घर में किसी का निधन हो गया हो या कोई बच्चा पैदा हुआ हो तो उसके संस्कार के बाद इसे बदलना जरूरी हो जाता है।
मान्यता है कि खंडित जनेऊ कभी धारण नहीं करना चाहिए। अगर जनेऊ का कोई धागा टूट गया है तो उसे बदल लेना चाहिए या फिर नया जनेऊ पहन लेना चाहिए।
जनेऊ किसी भी वक्त पहना नहीं जाता। इसे धारण करने के लिए साल भर में कई मुहुर्त आते हैं जिनकी गणना करने के बाद ही विधिवत तौर पर इसे धारण किया जाना चाहिए।