Shaligram Pooja:भगवान विष्णु का स्वरूप है शालिग्राम विग्रह, जानिए शालिग्राम की पूजा के नियम क्या हैं

Shaligram Pooja: हिंदू सनातन धर्म में हर भगवान के कुछ स्वरूप बताए गए हैं। इन्हीं में से एक है शालिग्राम का विग्रह। शालिग्राम के विग्रह को को भगवान विष्णु का प्रतीक कहा गया है। मान्यता है कि भगवान विष्णु मां वृंदा यानी तुलसी के शाप के बाद शालिग्राम पत्थर यानी विग्रह में बदल गए थे […]

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Shaligram Pooja: हिंदू सनातन धर्म में हर भगवान के कुछ स्वरूप बताए गए हैं। इन्हीं में से एक है शालिग्राम का विग्रह। शालिग्राम के विग्रह को को भगवान विष्णु का प्रतीक कहा गया है। मान्यता है कि भगवान विष्णु मां वृंदा यानी तुलसी के शाप के बाद शालिग्राम पत्थर यानी विग्रह में बदल गए थे और तभी से भगवान विष्णु के प्रतीक में शालिग्राम पत्थर यानी विग्रह की पूजा की जाती रही है।

शालिग्राम विग्रह की पूजा हिंदू घरों में की जाती है। शालिग्राम एक काले रंग का चिकना जीवाश्म पत्थर है और इस पत्थर को नेपाल में स्थित दामोदर कुंड से निकलने वाली काली गंडकी नदी से प्राप्त किया जाता है। इसीलिए कई जगहों पर शालिग्राम सालग्रामम और कहीं कहीं इसे गंडकी नंदन भी कहा जाता है। हिंदू समुदाय में इसकी पूजा तुलसी के साथ की जाती है और हर साल देवोत्थान एकादशी पर शालिग्राम और तुलसी का विधिवत विवाह भी आयोजित किया जाता है।

शालिग्राम के कितने रूप होते हैं

शास्त्रों में कहा गया है कि शालिग्राम के 33 स्वरूप होते हैं, इनमें से 24 प्रकार के शालिग्राम को भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जोड़ा गया है। मान्यता है कि 24 शालिग्राम साल की सभी 24 एकादशियों से संबंधित हैं और हर व्रत में एक शालिग्राम का संयोग होता है। गोल शालिग्राम भगवान विष्णु के गोपाल स्वरूप का प्रतीक है। वहीं मछली के आकार का शालिग्राम भगवान विष्णु के मतस्य अवतार की कहानी कहता है। आपको बता दें कि यदि शालिग्राम का आकार कछुए के जैसा है तो उसे भगवान विष्णु के कच्छप और कूर्म अवतार का प्रतीक माना गया है। इतना ही नहीं शालिग्राम विग्रह पर उभरनेवाले चक्र और रेखाएं विष्णुजी के अन्य अवतारों और श्रीकृष्ण रूप में बताई गई हैं।

शालिग्राम की पूजा के लाभ
शालिग्राम विग्रह की हमेशा तुलसी के साथ ही पूजा की जाती है। जिस घर में शालिग्राम औऱ तुलसी की एक साथ पूजा की जाती है, वहां दरिद्रता का वास नहीं रहता और हमेशा मां लक्ष्मी विराजमान रहती हैं। हर साल कार्तिक माह घरों में विधिवत रूप से शालिग्राम और तुलसी का विवाह कराया जाता है। मान्यता है कि इससे घर परिवार में सुख समृद्धि और धन धान्य बना रहता है। कहा जाता है कि जिस घर में शालिग्राम होते हैं वहां सभी तीर्थों का सुख मिलता है। तुलसी के साथ शालिग्राम की शिला का जलाभिषेक करने पर समस्त सुखों की प्राप्ति होती है और घर में सदैव समृद्धि बनी रहती है।

शालिग्राम की पूजा कैसे करनी चाहिए
घर में जिस स्थान पर शालिग्राम स्थापित किए गए हैं वहां रोज उनको तुलसी के साथ पूजा जाना चाहिए। इसलिए उनको तुलसी के पौधे के गमले में ही रखा जाता है। जलाभिषेक करके उनको चंदन का तिलक करना चाहिए। अब उनको अक्षत और जल चढ़ाने के बाद उनको तुलसी दल यानी तुलसी के पत्ते अर्पित किए जाने चाहिए। इसके बाद धूप दीप जलाकर आरती करनी चाहिए।

शालिग्राम की पूजा के नियम क्या है
शालिग्रामम वैष्णव धर्म में भगवान विष्णु के स्वरूप माने गए हैं। इनकी पूजा के लिए कई सारे नियम बनाए गए हैं। शालिग्राम विग्रह को कभी भी तुलसी के पौधे से अलग नहीं रखना चाहिए। शालिग्राम विग्रह की पूजा रोज ही करनी चाहिए। माहवारी या बीमारी के समय पूजा छोड़ी जा सकती है। शालिग्राम विग्रह को घर में स्थापित कर रखा है तो घर परिवार में मांस मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन नहीं होना चाहिए। घर में शालिग्राम विग्रह स्थापित है तो ध्यान रखें कि इसकी संख्या एक ही होनी चाहिए। एक घर में एक ही शालिग्राम विग्रह होना सही होता है। शालिग्राम विग्रह की पूजा से पहले उनको पंचामृत से स्नान करवाना चाहिए। शालिग्राम की पूजा के वक्त उनको चंदन का तिलक करके विग्रह के ऊपर तुलसी का एक पत्ता जरूर रखना चाहिए। शालिग्राम विग्रह की पूजा में हमेशी असली चंदन ही इस्तेमाल करना चाहिए। अगर घर में शालिग्राम विग्रह स्थापित है तो घर में लड़ाई झगड़ा, चोरी चकारी, चुगली, असत्य आदि नहीं बोलना चाहिए। जिस घर में शालिग्राम विग्रह स्थापित है वहां तुलसी के पौधे पर रोज दीपक जलना चाहिए। जिस घर में शालिग्राम विग्रह स्थापित होता है वहां स्त्रियों का सदैव सम्मान करना चाहिए।

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