Janmashtami 2024: भगवान श्रीकृष्ण को छ्प्पन भोग लगाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है. इश भोग में मीठा, नमकीन, खट्टा, तीखा, कसैला और कड़वे, सारे प्रकार के व्यंजन शामिल होते हैं. इसके साथ ही हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस जन्मोत्सव में भी भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग अर्पित किया जाता है. सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कई देशों में प्रभु को भोग अर्पित किया जाता है. इसके बाद इसी भोग को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं.
भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग लगाने की प्रथा के पीछे एक पौराणिक कथा छिपी हुई है. मान्यता है कि द्वापरयुग से लेकर आज तक भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग अर्पित किया जाता है. आइए जानते हैं कि आखिर क्यों भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग अर्पित किया जाता है.
एक पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रज के लोग स्वर्ग के राजा भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए विशेष आयोजन करते थे. एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने नंद बाबा से इस आयोजन के बारे में पूछा कि ये ब्रजवासी कौन का आयोजन करने जा रहे हैं. उस समय नंद बाबा ने उनको बताया कि इस पूजा से देवराज इंद्र प्रसन्न होंगे और उत्तम वर्षा करेंगे. इस पर कान्हा ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्र का काम है. आखिर हमें इसमें उनकी पूजा करने की क्या आवश्यकता है.
अगर हमें पूजा करनी ही है तो गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, जहां से हमको ढेर सारे फल और सब्जियां प्राप्त होते हैं. इसके साथ ही जानवरों के लिए चारे की भी व्यवस्था वही से होती है. भगवान श्रीकृष्ण की यह बात ब्रजवासियों को पसंद आई. इस कारण उन्होंने इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी.
जब ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत का पूजन शुरू कर दिया तो इससे देवराज इंद्र नाराज हो गए. इसके बाद उन्होंने भारी वर्षा शुरू कर दी और अपना प्रकोप दिखाने लगे. ऐसे में ब्रजवासी भयभीत होकर नंद बाबा के पास आए. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली से पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया. सभी ब्रजवासी इसी पर्वत की शरण में आ गए. इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण बिना कुछ खाए-पिए गोवर्धन पर्वत को 7 दिनों तक उठाए रहे. इससे देवराज इंद्र का घमंड चकनाचूर हो गया. आठवें दिन ब्रजवासी और भगवान कृष्ण वर्षा रुकने पर पर्वत के नीचे से बाहर आए.
बृजवासियों को मालूम था कि भगवान श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक कुछ भी नहीं खाया है. इस पर ब्रजवासियों ने माता यशोदा से पूछा कि वे अपने लल्ला को खाना कैसे खिलाती हैं, तब ब्रजवासियों को पता चला कि वे कान्हा को दिन में 8 बार खाना खिलाती हैं. ऐसे में बृजवासी अपने-अपने घरों से सात दिनों के हिसाब से हर दिन के 8 व्यंजन तैयार करके लाएं. इसमें वे ही व्यंजन थे, जो भगवान श्रीकृष्ण को पसंद थे. इस प्रकार 7*8=56 के हिसाब से उनको 56 भोग अर्पित किया गया. उस दिन से यह परंपरा चली आ रही है. भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग उसी दिन से अर्पित किए जाते हैं.
भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग में पंजीरी, माखन-मिश्री, खीर, रसगुल्ला, जलेबी, रबड़ी, जीरा-लड्डू, मालपुआ, मोहनभोग, मूंग दाल हलवा, घेवर, पेड़ा, काजू-बादाम बर्फी, पिस्ता बर्फी, पंचामृत, गोघृत, शक्कर पारा, मठरी, चटनी, मुरब्बा, आम, केला, अंगूर, सेब, आलूबुखारा, किशमिश, पकौड़े, साग, दही, चावल, कढ़ी, चीला, पापड़, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, दूधी की सब्जी, पूड़ी, टिक्की, दलिया, देसी घी, शहद, सफेद-मक्खन, ताजी क्रीम, कचौरी, रोटी, नारियल पानी, बादाम का दूध, छाछ, शिकंजी, चना, मीठे चावल, भुजिया, सुपारी, सौंफ, पान और मेवा आदि पकवानों का भोग लगया जाता है. ये सभी पकवान भगवान श्रीकृष्ण को बेहद ही पसंद हैं.
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