हड्डियों को तेजी से चटका कर इलाज कर रहें डॉक्टर! जानें क्या है कायरोप्रैक्टिक?

देश में आजकल कायरोप्रैक्टिक का चलन तेजी से बढ़ रहा है. सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हो रहे हैं जिसमें कायरोप्रैक्टर्स मरीजों की हड्डियां बजाते नजर आ रहे हैं. हालांकि इसपर कितना भरोसा करना चाहिए ये मरीजों को सोचने की जरुरत है.

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Courtesy: Social Media

Chiropractic: सोशल मीडिया पर आजकल कई वीडियो वायरल हो रहे हैं. जिसमें कुछ डॉक्टर मरीज़ों की हड्डियों को तेज़ी से चटकाते नजर आ रहे हैं. हालाँकि यह पहली नज़र में थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन ये पेशेवर कायरोप्रैक्टर्स हैं. जो हड्डी और जोड़ों के समायोजन में माहिर हैं.

लोगों को कायरोप्रैक्टिक एक नया चलन लगता है, लेकिन यह कोई नई तकनीक नहीं है. कायरोप्रैक्टिक काफी पुराने समय से किया जा रहा है.हालाँकि इसे अभी भी दुनिया भर में स्वीकृति पाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. स्ट्रेचिंग और निरंतर दबाव का उपयोग करने से लेकर कुछ जोड़ों के जोड़-तोड़ तक कायरोप्रैक्टर्स ने हाथ से एक त्वरित और कोमल जोर का उपयोग करके मैन्युअल उपचार विधियों का उपयोग किया.

क्या कहता है साइंस?

कायरोप्रैक्टर्स द्वारा दावा किया जाता है कि हड्डियों को जोड़-तोड़ का उद्देश्य जोड़ों की गति और उनके कार्य को बेहतर बनाना है. जोड़ को उसकी सामान्य गति सीमा से परे ले जाना शामिल है. इससे चटकने की आवाज़ आ सकती है. वैश्विक स्तर पर लोग अन्य मस्कुलोस्केलेटल दर्द के अलावा पीठ के निचले हिस्से में दर्द, गर्दन में दर्द, मांसपेशियों में दर्द और सिरदर्द के इलाज के लिए उनके पास जाते हैं. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, स्पाइन मैनिपुलेटिव थेरेपी क्रोनिक लो बैक पेन के लिए अनुशंसित उपचारों के समान प्रभाव उत्पन्न करती है.

कायरोप्रैक्टिक पर कितना भरोसा?

इसी तरह, जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि तीव्र पीठ के निचले हिस्से में दर्द वाले रोगियों में, स्पाइनल मैनिपुलेटिव थेरेपी  6 सप्ताह तक दर्द और कार्य में मामूली सुधार के साथ जुड़ी हुई थी. जिसमें क्षणिक मामूली मस्कुलोस्केलेटल नुकसान था. हालांकि इसने कहा कि अध्ययन के परिणामों में विविधता बहुत अधिक थी.जिसका अर्थ है कि निष्कर्ष भरोसेमंद नहीं हैं.साइंस डायरेक्ट, जर्नल ऑफ़ पेन एंड मैनेजमेंट में प्रकाशित एक बड़े आलोचनात्मक विश्लेषण के अनुसार कायरोप्रैक्टर्स का जन्मजात सबलक्सेशन या स्पाइनल मैनिपुलेशन में विश्वास तर्कसंगत नहीं है.

अंत में सभी विशेषज्ञों का यही कहना है कि सोशल मीडिया पर किसी ट्रेंड को फॉलो करने के बजाए लोगों को अपने दिमाग से काम लेना चाहिए. कायरोप्रैक्टिक उपचार कई लोगों के लिए सही साबित होता है तो वहीं कुछ लोगों की परेशानी और भी ज्यादा बढ़ सकता है. ऐसे में भरोसेमंद कायरोप्रैक्टर्स के पास जाए. 

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