जल्दी जांच कराने से कैंसर का इलाज संभव, इन जांचों को ना करें नजरअंदाज

डॉ. के मुताबिक कैंसर की जल्दी पहचान से जीवित रहने की दर में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है. उदाहरण के लिए स्तन कैंसर यदि चरण 0 या 1 में पता चलता है, तो 100 प्रतिशत जीवित रहने की संभावना रहती है. लेकिन जैसे-जैसे कैंसर का चरण बढ़ता है, जीवित रहने की संभावना में भारी कमी आ जाती है.

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Courtesy: Social Media

Cancer: हर साल दुनिया भर में 20 मिलियन से ज्यादा लोग कैंसर का शिकार होते हैं. लगभग 9.5 मिलियन लोग इस जानलेवा बीमारी के कारण अपनी जान गंवा देते हैं. यह आंकड़े दर्शाते हैं कि कैंसर एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य संकट बन चुका है. तंबाकू सेवन और अन्य जीवनशैली विकल्पों के बारे में जागरूकता बढ़ाना कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए महत्वपूर्ण कदम हैं.

हाल ही में हिंदुस्तान टाइम्स से एक साक्षात्कार में स्ट्रैंड लाइफ साइंसेज के पार्टनर डेवलपमेंट प्रमुख डॉ. अशोक ने कैंसर की समय पर पहचान के महत्व पर जोर दिया था. 

कैंसर का समय पर पता लगने से उपचार संभव

डॉ. के मुताबिक कैंसर की जल्दी पहचान से जीवित रहने की दर में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है. उदाहरण के लिए स्तन कैंसर यदि चरण 0 या 1 में पता चलता है, तो 100 प्रतिशत जीवित रहने की संभावना रहती है. लेकिन जैसे-जैसे कैंसर का चरण बढ़ता है, जीवित रहने की संभावना में भारी कमी आ जाती है. इसी प्रकार आंत, फेफड़े और अन्य प्रकार के कैंसर का समय पर पता लगने से उपचार की प्रभावशीलता और जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है.

कैंसर का अक्सर पता तब चलता है जब लक्षण व्यक्ति के दैनिक जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित कर चुके होते हैं और तब उपचार कम प्रभावी हो सकता है. नियमित स्क्रीनिंग स्वस्थ व्यक्तियों में कैंसर के जोखिम का पता लगाने में मदद करती है. हालांकि समय लागत और आक्रामक प्रक्रियाओं जैसी चुनौतियाँ स्क्रीनिंग के व्यापक उपयोग में बाधा डालती हैं.

कैंसर स्क्रीनिंग के प्रकार

1. आनुवंशिक परीक्षण: कुछ प्रकार के कैंसर वंशानुगत होते हैं और आनुवंशिक परीक्षण से इन जोखिमों का पता लगाया जा सकता है. जीनोमिक हेल्थ इनसाइट्स जैसे परीक्षणों से प्रारंभिक रोकथाम और निगरानी के लिए महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है.
   
2. गर्भाशय ग्रीवा कैंसर: 21 साल और उससे अधिक आयु की महिलाओं को हर 3 साल में पैप स्मीयर और हर 5 साल में HPV परीक्षण करवाना चाहिए. HPV टीके भी गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के जोखिम को कम करने में मदद करते हैं.

3. स्तन कैंसर: 40 वर्ष की आयु से हर साल मैमोग्राम की सिफारिश की जाती है. साथ ही मासिक स्व-परीक्षा और आनुवंशिक परीक्षण भी प्रारंभिक पहचान के लिए महत्वपूर्ण हैं.

4. कोलोरेक्टल कैंसर: 45 वर्ष की आयु में सिग्मोइडोस्कोपी की सिफारिश की जाती है. जबकि कोलोनोस्कोपी की सलाह 40 वर्ष से शुरू होकर हर 10 साल में दी जाती है.

5. प्रोस्टेट कैंसर: पुरुषों को 50 वर्ष की आयु में प्रोस्टेट कैंसर के लिए सालाना स्क्रीनिंग करनी चाहिए. इसमें PSA रक्त परीक्षण और डिजिटल रेक्टल परीक्षा (DRE) शामिल होती है.

6. फेफड़े के कैंसर: 50 वर्ष से अधिक उम्र के धूम्रपान करने वालों को सालाना कम खुराक वाली CT स्कैन करवानी चाहिए. यह स्क्रीनिंग सामान्य रूप से औसत या कम जोखिम वाले व्यक्तियों के लिए नहीं की जाती है.

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