आजकल के दौर में सरोगेसी से माता-पिता बनने का चलन बढ़ गया है. सरोगेसी एक प्रजनन तकनीक है जिसमें एक महिला (सरोगेट) किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े के लिए गर्भधारण करती है. सरोगेट माताएं या तो अपने अंडाणुओं का उपयोग करती हैं या डोनर के अंडाणुओं का उपयोग करती हैं. इस प्रक्रिया का आमतौर पर उपयोग तब किया जाता है जब माता-पिता बनने की इच्छा रखने वाले कपल्स किसी कारण बच्चे को जन्म नहीं दे पाते हैं. गर्भ न धारण कर पाने की अलग-अलग वजह जैसे कि चिकित्सा समस्याएं, उम्र, या अन्य कारण हो सकते हैं. सरोगेसी से मां बनने वालीं महिलाओं के स्वास्थ्य आदि पर एक शोध किया गया है, जिससे उनकी गर्भावस्था व उसके बाद की समस्याओं के बारे में जाना गया है.
गर्भधारण में असमर्थ व्यक्तियों की मदद के लिए सरोगेट माताओं का सहारा लिया जाता है. ये महिलाएं न केवल गर्भधारण करती हैं, बल्कि बच्चे को जन्म भी देती हैं. पिछले कुछ वर्षों में सरोगेसी का उपयोग बढ़ा है, लेकिन इसके स्वास्थ्य परिणामों पर जानकारी की कमी है. यह अध्ययन गर्भधारकों और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले कारकों की जांच करता है.
जेनरल सरोगेसी (Gestational Surrogacy): इसमें सरोगेट मदर के अंडाणुओं का उपयोग नहीं किया जाता. इसे IVF द्वारा प्रजनन के लिए Intended Parents के अंडाणु और शुक्राणु का उपयोग करके भ्रूण तैयार किया जाता है, और फिर इसे सरोगेट के गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है.
ट्रेडिशनल सरोगेसी (Traditional Surrogacy): इसमें, सरोगेट अपनी खुद की अंडाणुओं का उपयोग करती है, और इसे कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से गर्भधारण किया जाता है. इसमें सरोगेट का अपना आनुवंशिक संबंध बच्चे के साथ होता है.
यह अध्ययन ICES (Institute for Clinical Evaluative Sciences) और क्यूंस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया था. इसमें 2012 से 2021 के बीच ओंटारियो, कनाडा में 863,017 एकल जन्मों का विश्लेषण किया गया. इसमें विभिन्न गर्भधारण के तरीके शामिल थे:
97.6% (846,124) बिना किसी सहायता के गर्भधारण
1.8% (16,087) IVF द्वारा गर्भधारण
0.1% (806) सरोगेट के माध्यम से गर्भधारण
शोधकर्ताओं ने मातृ गंभीर बीमारी (Severe Maternal Morbidity - SMM) और नवजात गंभीर बीमारी (Severe Neonatal Morbidity - SNM) का अध्ययन किया, इसमें हेल्थ संबंधित कई इंडिकेटर्स का उपयोग किया गया है.
हाई ब्लडप्रेशर: ऐसी महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लडप्रेशर की समस्याएं देखने को मिलीं. इनमें प्रीक्लेम्पसिया जैसी स्थितियां शामिल थीं.
प्रसव के बाद ब्लीडिंग: सरोगेट माताओं में प्रसव के बाद ब्लीडिंग की घटनाएं भी सामान्य से अधिक पाई गईं हैं.
सिजेरियन डिलीवरी: सिजेरियन डिलीवरी की दर भी गर्भधारकों में उच्च थी, जो कि समस्याओं को बढ़ाने का संकेत हो सकती थीं.
समय से पहले बच्चे का जन्म: समय से पहले जन्म की घटनाएं भी सरोगेट माताओं में देखी गईं.
यह अध्ययन काफी महत्वपूर्ण है, लेकिन इसकी कुछ लिमिट भी हैं. जैसे कि, शोध में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि गर्भधारण का विकल्प क्यों चुना गया और कौन-कौन से डोनर का उपयोग किया गया. भविष्य के शोध में यह पता लगाया जा सकता है कि क्या ये कारक गर्भधारक और नवजात की हेल्थ को प्रभावित करते हैं.
शोध की प्रमुख डॉ. मारिया वेलेज ने कहा, ‘जिन डॉक्टर्स को गर्भधारण करने वाली महिलाओं की देखभाल में शामिल होना है, उन्हें अपने प्रेग्नेंट वूमेन को गर्भावस्था और प्रसव के दौरान संभावित जोखिमों के बारे में सलाह देनी चाहिए.’ उन्होंने यह भी बताया कि गर्भधारकों के लिए कुछ दिशा-निर्देश हैं, लेकिन ये हमेशा पालन में नहीं आते हैं.