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मकर संक्रांति पर करें सूर्य देव की अराधना, जानें शुभ मुहूर्त और त्योहार का महत्व

भारत के विभिन्न हिस्सों में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से जाना जाता है और इसे मनाने की पारंपरिक विधियां भी भिन्न होती हैं. उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाया जाता है जो एक कृषि आधारित त्योहार है.

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Courtesy: Social Media

Makar Sankranti: मकर संक्रांति एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जिसे भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. यह त्योहार विशेष रूप से भगवान सूर्य को समर्पित होता है और इसे सूर्य देव की पूजा का महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. हिंदू कैलेंडर में बारह संक्रांतियाँ होती हैं, लेकिन मकर संक्रांति को सबसे अधिक महत्व प्राप्त है, खासकर द्रिक पंचांग के अनुसार. 

भारत के विभिन्न हिस्सों में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से जाना जाता है और इसे मनाने की पारंपरिक विधियां भी भिन्न होती हैं. उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाया जाता है जो एक कृषि आधारित त्योहार है. असम में इसे बिहू कहा जाता है जो एक प्रमुख कृषि और सांस्कृतिक उत्सव है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे भोगी के नाम से मनाया जाता है, जो खासतौर पर फसल की कटाई के समय आयोजित होता है.

मकर संक्रांति का महत्व

मकर संक्रांति की तिथि हिंदू सौर कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती है. जब सूर्य देव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं. यह पर्व दसवें सौर महीने के पहले दिन मनाया जाता है. इस वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025 को मनाई जाएगी. पुण्य काल सुबह 09:03 बजे से शाम 06:21 बजे तक रहेगा. महा पुण्य काल सुबह 09:03 बजे से 10:54 बजे तक है. यह समय विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा और दान के लिए शुभ माना जाता है. मकर संक्रांति हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है, क्योंकि यह दिन सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश का प्रतीक है. इस दिन सूर्य देव की पूजा करके लोग उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, क्योंकि सूर्य देव ही पृथ्वी पर सभी जीवों का पोषण करते हैं. 

ऐसे मनाएं मकर संक्रांति 

1. पवित्र नदी में स्नान: लोग अपने दिन की शुरुआत पवित्र नदी में स्नान करके करते हैं, जिससे शरीर और आत्मा को शुद्धि मिलती है.
2. सूर्य देव को नैवेध अर्पित करना: सूर्य देव को अर्पित अन्न और फल से उन्हें धन्यवाद दिया जाता है.
3. दान और दक्षिणा: लोग इस दिन दान और दक्षिणा देने का महत्व समझते हैं, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है.
4. श्राद्ध अनुष्ठान: यह दिन विशेष रूप से अपने पूर्वजों की पूजा और श्राद्ध अनुष्ठान के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है.

सूर्य देव की पूजा

मकर संक्रांति का व्रत खास तौर पर पुण्य काल के दौरान तोड़ा जाता है. यह समय विशेष रूप से सूर्य देव के पूजन और दान देने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है. द्रिक पंचांग के अनुसार यदि मकर संक्रांति सूर्यास्त के बाद होती है. तो सभी पुण्य काल की गतिविधियां अगले दिन सूर्योदय तक स्थगित कर दी जाती हैं. मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है जो न केवल सूर्य देव की पूजा का प्रतीक है, बल्कि यह फसल की कटाई और नये जीवन की शुरुआत का भी संकेत है. यह पर्व विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है लेकिन इसका उद्देश्य एक ही है  सूर्य देव की आराधना और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत करना.

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