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भोपाल गैस त्रासदी स्थल से हटेगा 40 साल पुराना जहरीला कचरा, 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को होगा निपटारा

भोपाल गैस त्रासदी के चालीस साल बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री साइट पर संग्रहीत लगभग 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को निपटान के लिए स्थानांतरित किया गया है, लेकिन इस कदम को लेकर विवाद भी बढ़ रहा है.

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Courtesy: Social Media

Bhopal Gas Tragedy Waste: 2 दिसंबर, 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस के रिसाव ने भोपाल शहर को गैस चैंबर में बदल दिया था. इस आपदा में 15,000 से अधिक लोग मारे गए थे और 600,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए थे. यह घटना भारत की सबसे घातक औद्योगिक आपदाओं में से एक मानी जाती है. इस त्रासदी के बाद फैक्ट्री स्थल पर जमा हुए रासायनिक कचरे को निपटाने की प्रक्रिया को बुधवार से शुरू किया गया.

भोपाल गैस त्रासदी के बाद फैक्ट्री में जमा हुए करीब 337 मीट्रिक टन रासायनिक कचरे को पीथमपुर स्थित एक निपटान सुविधा में स्थानांतरित किया जा रहा है. कचरे को ले जाने के लिए 12 रिसाव-रोधी और अग्निरोधी कंटेनरों का उपयोग किया जा रहा है, जिनमें प्रत्येक कंटेनर में औसतन 30 टन कचरा है. इस प्रक्रिया में लगभग 100 कर्मचारी शामिल हैं, जिन्हें सुरक्षा चिंताओं के कारण 30 मिनट की शिफ्टों में काम करना पड़ा. 

विशेष काफिले का गठन

कचरे को कंटेनरों में स्थानांतरित करते समय साइट के चारों ओर 200 मीटर का दायरा सील कर दिया गया था और प्रवेश द्वार बंद कर दिए गए थे. सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 1,000 से अधिक पुलिस अधिकारियों की तैनाती की गई थी. कचरे को भोपाल, सीहोर, देवास और इंदौर से होते हुए पीथमपुर तक पहुँचाया जा रहा था और इसके सुरक्षित परिवहन के लिए विशेष काफिले का गठन किया गया था. इस काफिले में 25 वाहन थे, जिनमें पुलिस एस्कॉर्ट, एम्बुलेंस, डॉक्टर, फायर ब्रिगेड और त्वरित प्रतिक्रिया दल शामिल थे. 

कचरे में शामिल सामग्रियां

इस रासायनिक कचरे में पाँच प्रकार की सामग्री शामिल हैं, जिनमें यूनियन कार्बाइड कारखाने में उत्पादित कीटनाशक सेविन के अवशेष, मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के अवशेष, रिएक्टर अवशेष, दूषित मिट्टी और अन्य रसायन शामिल हैं. जहरीले कचरे में 162 मीट्रिक टन मिट्टी, 92 मीट्रिक टन सेविन और नेफ्थॉल अवशेष, 54 मीट्रिक टन अर्ध-प्रसंस्कृत कीटनाशक और 29 मीट्रिक टन रिएक्टर अपशिष्ट शामिल हैं. 

गैस पीड़ितों का असंतोष और विरोध  

कचरे के निपटान की प्रक्रिया को लेकर गैस पीड़ितों के प्रतिनिधि संगठनों ने असंतोष व्यक्त किया है. उनका कहना है कि जो कचरा हटाया जा रहा है, वह फैक्ट्री के 36 एकड़ क्षेत्र में दफन किए गए कुल जहरीले पदार्थ का एक प्रतिशत से भी कम है. इन संगठनों का दावा है कि प्रदूषण के कारण आसपास की बस्तियों में भूजल में भारी धातुएं और ऑर्गेनोक्लोरीन मौजूद हो गए हैं, जो कैंसर और किडनी की बीमारियों का कारण बन सकते हैं. ये समूह सरकार से मांग कर रहे हैं कि कचरे का निपटान भारत के बजाय अमेरिका में किया जाए, ताकि उसके निपटान से होने वाले संभावित खतरों से बचा जा सके. 

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