Manipur Violence: कुछ समय पहले मई महीने में मणिपुर में बड़ा जातीय संघर्ष हुआ था, जिसमें सैंकड़ों लोग मारे गए थें. आश्चर्य की बात ये है कि इस हिंसा में मारे गए लोगों का करीब 6 महीने बाद भी अंतिम संस्कार नहीं हो पाया है. हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर तक उन सभी शवों के अंतिम संस्कार का आदेश दिया है, जिनकी पहचान हो चुकी है. लेकिन इसके बाद भी इनका अंतिम संस्कार नहीं किया जा रहा है.
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मणिपुर के तीन मुर्दाघरों में , जिसमे से दो मुर्दाघर इंफाल में हैं और एक चुराचांदपुर में 94 शव अपने अंतिम संस्कार का इंतज़ार कर रहे हैं. बता दें कि इन 94 शवों में से 88 ऐसे हैं, जिनकी पहचान हो चुकी है, लेकिन उनके परिजनों ने दावा नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर कहा था की परिजन अपने लोगों के शव लेकर मणिपुर सरकार द्वारा चिन्हित 9 शवदाह केंद्रों में से किसी में भी कर सकते हैं. कोर्ट की तरफ से ये भी आदेश आया था कि अगर परिजन ऐसा नहीं करते हैं तो एक सप्ताह के बाद राज्य सरकार कानून के मुताबिक अंतिम संस्कार कर सकती है.
क्यों हो रही है देरी?
जानकारी के अनुसार, मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों को परिवार तैयार हैं लेकिन सरकार और प्रशासन की ओर से देरी की जा रही है. वहीं इस मामले पर राज्य सरकार से जुड़े सूत्रों ने बताया कि मणिपुर में हालत अभी सामान्य नहीं हुए हैं. राज्य सरकार के पास ख़ुफ़िया रिपोर्ट है कि जब किसी और समुदाय के व्यक्ति का शव किसी अन्य बहुलता वाले समुदाय के इलाके से गुजरता है तो फिर से हिंसा भड़कने के आसार हैं. यही वजह है कि सरकार सोच-समझकर कर कदम उठा रही है . हालाँकि इसके शांतिपूर्ण समाधान और शवों को दफनाने के लिए खुफिया ब्यूरो (आईबी) नियमित बैठकें कर रहा है.
सरकार कर रही है देरी
मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों को अंतिम हक़ दिलाने के लिए दोनों तरफ के सामाजिक संगठन अपनी आवाज उठा रहे हैं. इसी बीच कुकीज़ समुदाय के मामले को देख रहे आईटीएलएफ के प्रवक्ता गिन्जा वुअलजोंग ने शवों के अंतिम संस्कार में हो रहे देरी का जिम्मेदार राज्य सरकार को बताया है. उन्होंने कहा कि “राज्य सरकार विभिन्न मुद्दों का हवाला देते हुए शवों को उनके परिजनों को नहीं सौंप रही है." उन्होंने आगे कहा कि कुछ हफ़्ते पहले ही गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शवों के अंतिम संस्कार पर चर्चा करने के लिए लमका (चुरचांदपुर) आए थे, लेकिन इसके बाद भी कोई सहमति नहीं बन पाई. हालाँकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब ये उम्मीद की जा रही है कि तय तारीख तक शायद मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों को उनका आखिरी हक़ मिलेगा.