Gyanvapi Case: ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला, मुस्लिम पक्ष को लगा बड़ा झटका

Gyanvapi Case:ज्ञानवापी मामले इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आ गया है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है. जानें क्या है पूरा मामला

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हाइलाइट्स

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी अदालत के फैसले को रखा बरकरार
  • इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब सुप्रीम कोर्ट का रूख कर सकती है मुस्लिम पक्ष

Allahabad High Court Verdict: मंगलवार यानि 19 दिसम्बर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. इस फैसले से मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है. आज इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने भूमि स्वामित्व विवाद के मुकदमों को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद कमेटी द्वारा दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने इस दौरान कहा कि 'मुकदमा देश के दो प्रमुख समुदायों को प्रभावित करता है. हम ट्रायल कोर्ट को 6 महीने में मुकदमे का शीघ्र फैसला करने का निर्देश देते हैं.'

कोर्ट दे सकती है सर्वे का निर्देश 

सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि एक मुकदमे में किए गए एएसआई सर्वे  को अन्य मुकदमों में भी दायर किया जाएगा. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर निचली अदालत को लगता है कि किसी हिस्से का सर्वे जरूरी  है, तो कोर्ट एएसआई को सर्वे करने का निर्देश दे सकती है. 

इन याचिकाओं को किया गया खारिज 

इलाहाबाद हाई कोर्ट में वाराणसी न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी (एआईएमसी) और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा याचिका दायर की गई थी. इस याचिका में वाराणसी अदालत के 8 अप्रैल, 2021 के ज्ञानवापी मस्जिद का व्यापक सर्वे करने के आदेश को चुनौती दी गई थी. 

सभी पक्ष को सुनने के बाद 8 दिसम्बर को रख लिया था फैसला सुरक्षित 

जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने 8 दिसम्बर को सभी याचिककर्ताओं और प्रतिवादी पक्ष के वकीलों की दलीले सुनने के बाद अपना  फैसला सुरक्षित रख लिया था. बता दें कि ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन की देखभाल करने वाली एआईएमसी ने वाराणसी न्यायालय में दायर एक मुकदमे को चुनौती दी थी, जिसमें हिंदू याचिकाकर्ताओं ने उस स्थान पर एक मंदिर बनाने की मांग की है जहां ज्ञानवापी मस्जिद है.

क्या कहना है हिन्दू पक्ष का 

इस मामले पर हिन्दू पक्ष का कहना है कि वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद असल में एक मंदिर का हिस्सा है. इसलिए इसे तोड़कर उस स्थान पर मंदिर बनाना चाहिए. हालांकि अब ये माना जा रहा है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट से मिले झटके के बाद अब मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट का रूख कर सकता है.

कब से चल रहा है मामला 

ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर लड़ाई काफी लंबे समय से चली आ रही है. हिन्दू पक्ष का कहना है कि ये परिसर एक हिन्दू मंदिर स्थल है, और फिर से मन्दिर बनाने के लिए उपलब्ध कराया जाए. इसे लेकर पहली बार मुकदमा साल 1991 में वाराणसी के न्यायालय में दायर किया गया था. इस याचिका में हिन्दू पक्ष की ओर से मस्जिद में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी. ये याचिका प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेशर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय की ओर से दाखिल की गई थी. 

इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने 1991 में ही बने  'प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट' का हवाला देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस याचिका को चुनौती दी थी.  प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के अनुसार, स्वतंत्रता के बाद ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों को उनकी यथास्थिति में ही रखने की बात की गई है. जिसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1993 में इसपर स्टे लगा दिया था और मस्जिद को यथास्थिति रखने का निर्देश दिया था. 

इसके बाद 2021 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फिर से वाराणसी कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई. 18 अगस्त 2021 को राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता शाहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक की ने ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की पूजा-दर्शन की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की. जिसके बाद कई सालों तक चली लंबही सुनवाई के बाद वाराणसी न्यायालय ने  8 अप्रैल 2022 को श्रृंगार गौरी और अन्य देव विग्रहों के बारे में पता लगाने के लिए के लिए सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था. इसके बाद मुस्लिम पक्ष की ओर से इस फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

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