Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी मंगलवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि किसी को 'मियां-तियान' या 'पाकिस्तानी' कह कर बुलाना गलत है, लेकिन यह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला अपराध नहीं है.
जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने एक सरकारी कर्मचारी को 'पाकिस्तानी' कहने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ मामला की सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसा कहना अपराध नहीं है लेकिन गलत है. इसके बाद अदालत की ओर से इस मामले को खत्म कर दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट मामले पर सुनवाी करते हुए कहा कि निस्संदेह रुप से दिए गए बयान गलत हैं. लेकिन यह सूचना देने वाले की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के बराबर नहीं माना जाएगा. इसलिए हमारा मानना है कि अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 298 के तहत आरोपमुक्त किया जाना चाहिए.
कोर्ट में यह मामला झारखंड के एक उर्दू अनुवादक और एक कार्यवाहक क्लर्क द्वारा दर्ज कराई गई थी. जिसमें शिकायत किया गया था कि जब वह सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के बारे में जानकारी देने के लिए आरोपी से मिलने गया, तो आरोपी ने उसके धर्म का हवाला देकर उसके साथ दुर्व्यवहार किया. साथ ही उसके आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन को रोकने के लिए आपराधिक बल का इस्तेमाल किया.
इस घटना के बाद इसे पुलिस द्वारा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से अपमान करना) और 353 (सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए साफ कर दिया कि ऐसा कहना कोई अपराध नहीं है लेकिन सभी भी नहीं है.