Chandrayaan-3: इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) का मिशन चंद्रयान-3 आज शाम चांद की सतह पर उतरने वाला है. इससे पूर्व लैंडर के लिए अनुकूल स्थितियों का जायजा लिया जाएगा. लैंडिंग के निर्धारित वक्त से 2 घंटे पहले चंद्रयान-3 के उतारने पर विचार किया जाएगा. यदि आज ये चांद पर लैंड नहीं होता है, तो 27 अगस्त को इसे चांद पर उतारा जाएगा.
चंद्रयान-3 है क्या?
इसरो के अधिकारियों का कहना है कि चंद्रयान-2 का दूसरा पार्ट है चंद्रयान-3. जो चांद की सहत पर उतरकर परीक्षण करेगा. जिसमें प्रणोदन मॉड्यूल, एक रोवर एंव एक लैंडर होगा. चंद्रयान-3 का पूरा ध्यान चंद्रमा की सतह पर सही तरीके से लैंड करने पर है. मिशन को पूरी तरह से सफल करने के लिए इसमें कई उपकरण लगाए गए हैं. जिस कारण से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा पर सफल नहीं हुआ था. इन गलतियों का पूरा खास ध्यान रखा गया है.
चंद्रमा पर आखिर कठिन क्यों है?
आपको बता दें कि चंद्रमा पर हवा की कमी है. अधिक मात्रा में धूल है. जब भी चंद्रमा एंव मंगल पर किसी तरह का अंतरिक्ष यान उतरता है, तो उसकी गति को धीमा करना पड़ता है. क्योंकि जिस स्थान पर लैंडिंग करानी है, उसका गुरुत्वाकर्षण अंदर की तरफ खींच सके.
वातावरण है महत्वपूर्ण
धरती एंव मंगल के साथ सबसे बड़ी चुनौती ये हो जाती है, कि उसका वातावरण कैसा है. कोई भी वाहन अंतरिक्ष के निर्वात को छोड़कर गैस की एक बड़ी दीवार से जाकर टकराता है, तो अधिक मात्रा में ऊष्मा ऊर्जा का निर्माण होता है. इससे बचने के लिए अंतरिक्ष यान खुद हीट शील्डिंग अपने साथ ले जाते हैं. वहीं वायुमंडल में प्रवेश करने के तुरंत बाद खुद को सावधानीपूर्वक धीमी गति प्रदान करने के लिए पैराशूट का उपयोग करते हैं.
इंजनों का इस्तेमाल
चंद्रमा पर बमुश्किल वायुमंडल है इसलिए ही पैराशूट के अलावा कोई दूसरा विकल्प ही नहीं है. गर्मी से यान को बचाने की बात आती है, तो ये सुविधाजनक हो जाता है. इसके बाद इसे धीमा करने एंव लैंडिंग को रोकने के लिए अपने इंजनों को सक्षम करने की आवश्यकता है. कहने का मतलब ये हुआ कि ईंधन के सीमित भंडार गलती करने के लिए बहुत कम चांस रखते हैं. दूसरी तरफ चंद्रमा की सतह रेगोलिथ नामक सामग्री से पूरी तरह से ढकी हुई है. ये चट्टान एंव कांच के टुकड़ों तथा रेगोलिथ धूल का मिश्रण है.
थोड़ी सी गलती पर यान ले सकता है गलत रास्ता
अंतरिक्ष यात्रियों के सामने समस्या ये हो जाती है, कि धूल हर जगह जमा हो जाती है. जिससे गुरुत्वाकर्षण को रोकने में काफी हद तक मदद मिलती है. जब कोई भी अंतरिक्ष यान उतर रहा होता है, तो उसके रॉकेट थ्रस्टर्स धूल फेंकने लगते हैं. जो इसके सेंसर को अधिक प्रभावित करता है. इसकी एक भी गतली यान को गलत दिशा में ले जा सकती है. जिसके कारण कि सपाट लैंडिंग गड्ढे में बदल जाती है.