मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का आज खत्म होगा कार्यकाल, आखिरी दिन AMU मुद्दे पर सुनाएंगे फैसला

सीजेआई चंद्रचूड़ आज अपने पद से रिटायर हो जाएगें. हालांकि आज ही देश के एक बड़े मुद्दा पर अपना फैसला सुनाएंगे. उनकी अध्यक्षता वाली पीठ इस सवाल का आज जवाब देगी कि क्या अलिगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पास संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा है?

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Courtesy: Social Media

CJI DY Chandrachud: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का आज अदालत में आखिरी दिन है. आज के बाद वो अपने पद से मुक्त हो जाएगे. आज अपने आखिरी कार्य दिवस के दिन सीजेआई चंद्रचूड़ देश के एक बड़े मुद्दा पर अपना फैसला सुनाने वाले हैं. उनकी अध्यक्षता वाली पीठ इस सवाल का आज जवाब देगी कि क्या अलिगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पास संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा है?

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ शुक्रवार को इस मुद्दे पर फैसला सुनाएगी। इस पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जेबी पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा वाली पीठ ने आठ दिनों तक दलीलें सुनने के बाद 1 फरवरी को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. 

AMU का अल्पसंख्यक दर्जा

अलिगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का ये मुद्दा देश का एक महत्वपूर्ण मुद्दा इसलिए है क्योंकि अगर 1920 में स्थापित एएमयू अपना अल्पसंख्यक दर्जा खो देता है तो उसे अन्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की तरह छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए आरक्षण नीतियों को लागू करना पड़ेगा. हालांकि अगर यह दर्जा बरकरार रहता है तो विश्वविद्यालय मुस्लिम छात्रों के लिए 50 प्रतिशत तक आरक्षण दे सकता है. अभी के समय में एएमयू राज्य आरक्षण नीतियों का पालन नहीं करता है. लेकिन इसके पास अपने संबद्ध स्कूलों या कॉलेजों के छात्रों के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने की आंतरिक व्यवस्था है. 

देश के 50वें CJI

डीवाई चंद्रचूड़ देश के 50 वें चीफ जस्टिस हैं. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान देश के कई बड़े मुद्दों पर अपना फैसला सुनाया है. अपने द्वारा सुनाए गए फैसलों के लिए उन्हें काफी प्रशंसा मिली. हालांकि उनके द्वारा लिए गए कुछ फैसलों की आलोचना की गई. इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में ऐसे कई मुद्दे आएं हैं जिनपर फैसला सुनाना आसान नहीं रहा है. देश की धर्मनिरपेक्षता को ध्यान में रखते हुए और अपने पद की गरिमा को बरकार रखते हुए सीजेआई अपना फैसला सुनाते रहे हैं. 

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