सहमति से यौन संबंध का दावा पॉक्सो मामलों में मुकदमे के लिए अप्रासंगिक: दिल्ली उच्च न्यायालय

नई दिल्ली :  दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण कानून) मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि सहमति से यौन संबंध बनाने का दावा, याचिका के लिए कानूनन अप्रासंगिक है. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार के मामलों में पीड़िता की उम्र सबसे महत्वपूर्ण कारक है, और यदि पीड़िता 18 वर्ष से कम उम्र की है, तो उसे वैध सहमति देने की संभावना नहीं मानी जा सकती.  

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Courtesy: social media

नई दिल्ली :  दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण कानून) मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि सहमति से यौन संबंध बनाने का दावा, याचिका के लिए कानूनन अप्रासंगिक है. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार के मामलों में पीड़िता की उम्र सबसे महत्वपूर्ण कारक है, और यदि पीड़िता 18 वर्ष से कम उम्र की है, तो उसे वैध सहमति देने की संभावना नहीं मानी जा सकती.  

सहमति का मुद्दा अप्रासंगिक: अदालत की टिप्पणी  

न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा, ‘‘सहमति से यौन संबंध बनाने की यह दलील कानूनन अप्रासंगिक है. पॉक्सो अधिनियम के तहत पीड़िता की उम्र निर्णायक कारक होती है. अगर पीड़िता 18 वर्ष से कम है, तो वह कानूनी तौर पर सहमति नहीं दे सकती.’’

उन्होंने यह भी कहा कि पॉक्सो अधिनियम के तहत, नाबालिग के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों में सहमति का कोई महत्व नहीं होता, क्योंकि कानून यह मानता है कि नाबालिग अपनी इच्छा से सहमति नहीं दे सकते.  

जमानत अर्जी पर अदालत का फैसला  

कोर्ट ने इस मामले में आरोपी व्यक्ति की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया. आरोपी पर आरोप था कि उसने 2024 में अपनी 16 वर्षीय पड़ोसन का यौन उत्पीड़न किया और गर्भपात के लिए दवाइयाँ दीं. आरोपी ने यह दावा किया था कि पीड़िता 18 वर्ष की थी और उनके बीच सहमति से संबंध थे.  

हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस दावे को स्वीकार नहीं किया और कहा कि ऐसे मामलों में पीड़िता की वास्तविक उम्र का महत्व है, जो स्कूल रिकॉर्ड्स में स्पष्ट रूप से दर्शायी जाती है. न्यायालय ने 3 अगस्त 2008 को पीड़िता की जन्म तिथि का हवाला दिया.  

मुकदमे की कार्यवाही और जमानत की स्थिति  

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि मुकदमा अभी चल रहा है और प्रमुख सरकारी गवाहों से जिरह होना बाकी है. अदालत ने माना कि आरोपी का बयान और संबंधित साक्ष्य मुकदमे के दौरान ही पूरी तरह से परखा जाएगा. अदालत ने यह भी कहा कि इस समय, अपराध की गंभीरता और गवाहों को प्रभावित करने की संभावना को ध्यान में रखते हुए, जमानत देना उचित नहीं होगा.  

अदालत ने कहा, ‘‘अपराध की गंभीरता, गवाह को प्रभावित करने की संभावना और मुकदमे के वर्तमान चरण को देखते हुए, अदालत जमानत देने के पक्ष में नहीं है.’’  

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