नयी दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बुधवार को आरोप लगाया कि कांग्रेस की उत्तराखंड इकाई के नेता और पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत ने कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर देहरादून में लगभग 70 करोड़ रुपये मूल्य के दो भूखंडों को ‘‘हड़पने’’ की साजिश रची.
ईडी ने एक बयान में कहा कि एजेंसी ने धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत 20 जनवरी को एक आदेश जारी होने के बाद उक्त जिले के सहसपुर में स्थित 101 बीघा के दो भूखंडों को अस्थायी रूप से कुर्क कर लिया है.
भूखंड का पंजीकृत मूल्य 6.56 करोड़ रुपये है लेकिन इसका मौजूदा बाजार मूल्य 70 करोड़ रुपये से अधिक है. रावत (64) राज्य के पूर्व वन मंत्री रहे हैं.
वह 2022 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. कुर्की आदेश पर उनकी टिप्पणी के लिए तुरंत संपर्क नहीं हो सका.
धन शोधन का मामला उत्तराखंड पुलिस द्वारा रावत के ‘‘करीबी सहयोगी’’ बीरेंद्र सिंह कंडारी और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी से सामने आया है.
ईडी ने दावा किया कि अदालत के ‘‘स्पष्ट आदेश’’ के बावजूद दिवंगत सुशीला रानी ने अन्य व्यक्तियों के साथ ‘‘साजिश’’ कर कंडारी और नरेंद्र कुमार वालिया (इन जमीनों के लिए) के नाम पर दो पावर ऑफ अटॉर्नी (पीओए) पंजीकृत की थीं.
अदालत ने भूखंडों की बिक्री को रद्द कर दिया था.
एजेंसी ने बताया कि इन भूखंडों को कंडारी ने ‘पावर ऑफ अटॉर्नी’ का उपयोग कर रावत की पत्नी दीप्ति रावत और लक्ष्मी राणा को ‘‘मामूली’’ राशि पर बेचा, जो सरकारी राजस्व प्राधिकरण द्वारा निर्धारित सर्किल दरों से बहुत कम थी.
दीप्ति रावत द्वारा खरीदी गई जमीन अब दून इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (डीआईएमएस) का हिस्सा है, जिसे श्रीमती पूर्णा देवी मेमोरियल ट्रस्ट के तहत संचालित किया जाता है. दीप्ति रावत इस ट्रस्ट की अध्यक्ष हैं.
ईडी ने आरोप लगाया कि ट्रस्ट का नियंत्रण हरक सिंह रावत के परिवार और दोस्तों के पास है.
इसने बयान में कहा, “दीप्ति रावत और लक्ष्मी राणा ने बीरेंद्र सिंह कंडारी, हरक सिंह रावत, दिवंगत सुशीला रानी और अन्य व्यक्तियों द्वारा रची गई साजिश के तहत उक्त भूमि को अपने नाम पर पंजीकृत कराने में कामयाबी हासिल की.”
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