दिल्ली में जाट मतदाता करीब 10 % है. विधानसभा की 8 सीटों पर उनका असर निर्णय लेने में काफी असरदार रहता है. 2020 में इन 8 में से 3 पर बीजेपी और 5 पर आम आदमी पार्टी ने जीत हासिल की थी. इस बार बीजेपी ने जाटों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए खास रणनीति अपनाई है.
दिल्ली में जाट समुदाय को लेकर फिर से राजनीतिक हलचल बढ़ गई है. आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होनें जाटों को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग की है. केजरीवाल का कहना है कि ओबीसी सूची में न होने के वजह से दिल्ली के जाट न तो पुलिस भर्ती में आरक्षण का लाभ उठा पा रहे हैं और न ही दिल्ली विश्वविघालय में दाखिला पा रहे है.
अरविंद केजरीवाल का यह पत्र उस समय आया है, जब बीजेपी ने जाट समुदाय को लेकर आम आदमी पार्टी की घेराबंदी को और मजबूत कर दिया है. बीजेपी ने जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले नेता परवेश वर्मा को नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा है. पूर्व सांसद परवेश के पिता, साहेब सिंह वर्मा जाट समुदाय के प्रमुख नेता थे और वे केंद्र सरकार में मंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री भा रह चुके है.
दिल्ली की राजनीति में जाट समुदाय की अहमियत बेहद गहरी है। यह समुदाय मुख्य रूप से हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली में बसा हुआ है, जहां दिल्ली में उनकी संख्या लगभग 10 प्रतिशत है. जाटों का अधिकतर ठिकाना आउटर दिल्ली में है, और राजधानी की 8 विधानसभा सीटों पर उनका प्रभाव मजबूत है.
दिल्ली की जिन विधानसभा सीटों पर जाट समुदाय का प्रभाव ज्यादा है, उनमें नांगलोई, मुंडका, नजफगढ़, बिजवासन और किराड़ी प्रमुख हैं. इन सीटों को ध्यान में रखते हुए, आम आदमी पार्टी ने जाट समुदाय से जुड़े उम्मीदवारों को 5 सीटों पर टिकट दिया है. इनमें मुंडका से जसबीर कराला, नांगलोई से रघुविंदर शौकीन, दिल्ली कैंट से वीरेंद्र कादियान, उत्तम नगर से पूजा नरेश बाल्यान और मटियाला से सुमेश शौकीन शामिल हैं. वहीं, बीजेपी भी जाटों को अपनी ओर खींचने की कोशिश में है और उसने परवेश वर्मा को केजरीवाल के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा है. इसके अलावा, आप सरकार में मंत्री रहे कैलाश गहलोत को बिजवासन सीट से टिकट दिया गया है.
दिल्ली के चुनावी दंगल में जाट समुदाय की भूमिका अहम साबित हो रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में जाट वोट बंटने के कारण जाट बहुल 3 सीटों पर बीजेपी और 5 पर आम आदमी पार्टी (AAP) को जीत मिली थी, जिससे AAP को 62 और बीजेपी को 8 सीटों पर विजय मिली. वहीं, 2015 में जाटों ने एकतरफा AAP को समर्थन दिया था, जिसके चलते पार्टी 67 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी.
2013 में, जाट समुदाय बीजेपी के पक्ष में झुका था, और तब 8 जाट बहुल सीटों में से 6 पर बीजेपी, एक पर निर्दलीय और एक पर AAP की जीत हुई थी. उस चुनाव में AAP के जाट विधायक सुरिंदर सिंह कमांडो दिल्ली कैंट सीट से जीतने में सफल रहे थे.
अब बीजेपी 2013 की तरह ही जाटों के समर्थन को एक मजबूत आधार बनाने की कोशिश कर रही है, जबकि AAP केजरीवाल जाट समुदाय को ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं ताकि बीजेपी की लामबंदी को तोड़ा जा सके. दिल्ली विधानसभा चुनाव 5 फरवरी को होंगे, और 8 फरवरी को सभी 70 सीटों के परिणाम घोषित किए जाएंगे। दिल्ली में सरकार बनाने के लिए 36 सीटों की आवश्यकता है.