Punajab: बासमती चावल के निर्यात से पंजाब के किसानों को मिला बड़ा फायदा, कूल निर्यात में 34 फीसदी हिस्सा पंजाब का

Punjab: पंजाब के किसानों को इस बार बासमती चावल के निर्यात से बड़ा फायदा हुआ है. बासमती चावल के कूल निर्यात में 34 फीसदी हिस्सा पंजाब का है.

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Punjab: केंद्र सरकार की ओर से बासमती चावल पर न्यूनतम निर्यात मूल्य 950 डॉलर प्रति टन करने का सकारात्मक असर पंजाब के किसानों पर देखने को मिल रहा है. बता दें कि चालू वित्त वर्ष में बासमती का निर्यात 18,310.35 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. जिसमें 34 फीसदी से ज्यादा हिस्सा पंजाब के किसानों का है. इसे लेकर कहा जा रहा है कि इसका कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में लंबे दाने वाली प्रीमियम बासमती किस्मों की बढ़ती कीमतें हैं.


बासमती चावल का निर्यात बढ़ रहा है 

गौरतलब है कि पंजाब बासमती निर्यातक एसोसिएशन के प्रधान अशोक सेठी के मुताबिक बासमती चावल का निर्यात बढ़ रहा है और बढ़ती मांग के कारण व्यापारी अत्यधिक सक्रिय हैं. बासमती चावल से इस बार पंजाब के किसानों को काफी मुनाफा हुआ है. जानकारी के अनुसार, इस साल देश से 20.10 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) बासमती चावल का निर्यात हुआ है. हालाँकि इसकी तुलना में 2022-23 की इसी अवधि में 18.75 एलएमटी की शिपिंग के साथ 15,452.44 करोड़ रुपये का बासमती चावल निर्यात हुआ था.  इसी तरह, 2021-22 में, भारत ने 17.02 लाख मीट्रिक टन बासमती चावल का निर्यात किया, जिससे 10,690.03 करोड़ रुपये की आय हुई थी. 

 

केंद्र सरकार के एमईपी 950 डॉलर प्रति टन करने से बढ़ी मांग 

बता दें कि केंद्र सरकार ने जब बासमती पर एमईपी 1200 डॉलर प्रति टन रखी थी तो अंतराष्ट्रीय बाजार में बासमती चावल  की खरीद काफी गिर गई थी और इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाकिस्तान की बासमती चावल का डंका बजने लगा था.
यहाँ तक कि हालात यह थे कि पंजाब में बासमती की फसल की खरीद 3 हजार रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई थी, लेकिन जैसे ही केंद्र सरकार ने एमईपी 950 डॉलर प्रति टन किया तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय बासमती की कीमतें गिर गईं, जिसका नतीजा यह हुआ कि डिमांड बढी और पारंपरिक बासमती की कीमतें 6,000 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर तक पहुंच गईं, जबकि पूसा 1121, 1718 और मूछल जैसी अन्य प्रीमियम किस्मों को 4,500 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास दाम मिले. 

 

पानी बचाता है बासमती चावल 

बता दें पंजाब कृषि विभाग के आंकडों के अनुसार, इस साल राज्य में लगभग 6 लाख हेक्टेयर भूमि बासमती की खेती के लिए उपयोग की गई है. गौरतलब है कि  यह फसल 110 दिन में तैयार हो जाती है. यानी धान की खेती से एक माह पहले. और इस तरह से बासमती की खेती में धान के मुकाबले 30 फीसदी पानी की बचत होती है.