असम उग्रवाद को खत्म करने के लिए सरकार हर कोशिश कर रही है. वहीं यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (उल्फा), केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच 29 दिसंबर को त्रिपक्षीय समझौता होने की उम्मीद है. इस त्रिपक्षीय समझौते का उद्देश्य पूर्वोत्तर राज्य में दीर्घकालिक शांति बहाल करना है. जानकारी के अनुसार, गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और उल्फा के वार्ता समर्थक गुट के एक दर्जन से अधिक शीर्ष नेता यहां शांति समझौते पर हस्ताक्षर के समय उपस्थित रहेंगे.यह समझौता पूर्वोत्तर राज्य में दशकों पुराने उग्रवाद का अंत करने के लिए किया जा रहा है.
खबरों के अनुसार इस समझौते में लंबे समय से चले आ रहे असम से संबंधित राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों का ध्यान रखा जाएगा. साथ ही ये समझौता मूल निवासियों को सांस्कृतिक सुरक्षा और भूमि अधिकार प्रदान करेगा.
शांति बहाली है समझौते का उद्देश्य
बता दें, परेश बरुआ के नेतृत्व वाले उल्फा का कट्टरपंथी गुट इस समझौते का में हिस्सा नहीं लेगा क्योंकि वह सरकार के प्रस्तावों को लगातार अस्वीकार कर रहा है. सूत्रों ने कहा कि राजखोवा समूह के दो शीर्ष नेता अनूप चेतिया और शशधर चौधरी पिछले सप्ताह राष्ट्रीय राजधानी में थे. उन्होंने शांति समझौते को अंतिम रूप देने के लिए सरकारी वार्ताकारों के साथ बातचीत की.
समझौते में शामिल होंगे ये लोग
उल्फा गुट से सरकार की ओर से इंटेलीजेंस ब्यूरो के निदेशक तपन डेका और पूर्वोत्तर मामलों पर सरकार के सलाहकार एके मिश्रा शामिल हैं. परेश बरुआ के नेतृत्व वाले गुट के कड़े विरोध के बावजूद राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट ने 2011 में केंद्र सरकार के साथ बिना शर्त बातचीत शुरू की थी. राजखोवा के बारे में माना जाता है कि वह चीन-म्यांमार सीमा के पास एक जगह पर रहते हैं. उल्फा का गठन 1979 में संप्रभु असम की मांग के साथ किया गया था. तब से यह संगठन विघटनकारी गतिविधियों में शामिल रहा है. केंद्र सरकार ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था.