Independence day 2023: आजादी के 5 बड़े आंदोलन  जिसने भारत को आजादी दिलाने में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

Independence day 2023: भारत को आजाद हुए 76 साल हो चुके हैं. हालांकि ये आजादी हमें यूं ही नहीं मिली बल्कि इसके लिए देश को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है. आजादी के लिए कई आंदोलन किए गए जिसमें भारत के वीर सपूतों ने हंसते-हंसते अपने देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी. 1857 का […]

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Independence day 2023: भारत को आजाद हुए 76 साल हो चुके हैं. हालांकि ये आजादी हमें यूं ही नहीं मिली बल्कि इसके लिए देश को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है. आजादी के लिए कई आंदोलन किए गए जिसमें भारत के वीर सपूतों ने हंसते-हंसते अपने देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी.

1857 का विद्रोह-

भारत की आजादी के लिए पहली बार 1857 में आंदोलन की गई. इस आंदोलन को स्वतंत्रता संग्राम के नाम से भी जाना जाता है. यह आंदोलन लगभग 2 वर्षों तक देश के कई क्षेत्रों में चला. इस आंदोलन की शुरुआत मेरठ से हुई थी जो आगे चलकर एक बड़ा आंदोलन का रूप ले लिया.

नील विद्रोह-

19 वीं शताब्दी के मध्य से लेकर भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक अंग्रेजों के विरुद्ध किसानों ने भी कई आंदोलन किए जिसमें से नील विद्रोह सबसे अहम था. इसके अलावा किसानों ने दक्कन विद्रोह, तेभागा आंदोलन, तेलंगाना आंदोलन, मोपला विद्रोह, बारदोली सत्याग्रह, किसान सभा आंदोलन, जैसे कई और आंदोलन शामिल है.  नील विद्रोह 1859-60 में बंगाल में हुआ था यह आंदोलन किसानों का अंग्रेजी शासन के विरुद्ध पहला संगठित सर्वाधिक जुझारू आंदोलन था.

जलियांवाला बाग हत्याकांड-

13 अप्रैल 1919 के आंदोलन को जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है. उस दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने उन पर अंधाधुंध गोलियां चला दी. जिसमें निहत्थे बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों की मौत हो गई. इस घटना के बाद भारतीय लोगों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम  की लड़ाई लड़ने में सबसे ज्यादा प्रभाव डाला था.

चौरी चौरा कांड-

चौरी चौरा  कांड भारतीय इतिहास के पन्नों पर इस तरह दर्ज है जिसे कोई भूल नहीं सकता है.  1 फरवरी 1922 के दिन  चौरी चौरा  थाने के दरोगा गुप्तेश्वर सिंह ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे बलिदानियों की पिटाई शुरू कर दी जिसके बाद आंदोलनकारियों ने पुलिसवालों पर पथराव शुरू कर दी. जिसके बाद पुलिस ने गोलियां चलाना शुरु कर दी. और उन्होंने तब तक गोलियां चलाई जब तक उनके सभी कारतूस समाप्त हो गए. इसके बाद आंदोलनकारियों का गुस्सा फूटा और उन्होंने  थाने में बंद 23 पुलिसवालों को जिंदा जला दिया.

असहयोग आंदोलन-

1920 से फरवरी 1922 के बीच महात्मा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन किया था. इस आंदोलन से पहले भी कई आंदोलन हो चुके थे जिसके बाद महात्मा गांधी को लगा कि अंग्रेजों के हुकूमत से उचित न्याय मिलने की कोई संभावना नहीं है. जिसके बाद उन्होंने असहयोग आंदोलन शुरू किया.