India Hemp Farming: भारत में ड्रग्स, गांजा गैर कानूनी क्यों है? हालांकि अन्य देशों में गांजा वैध है पढ़ें पूरी खबर

India Hemp Farming: दुनियाभर के देश गांजे के इस्तेमाल को वैध बनाते दिख रहे हैं. जबकि भारत में 38 वर्ष से इसके ऊपर बैन है. इसमें बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि जब पश्चिमी देश वैध बना रहे हैं, तो भारत में यह गैर कानूनी क्यों है. भारत में भी इसका इस्तेमाल खुले तरीके […]

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India Hemp Farming: दुनियाभर के देश गांजे के इस्तेमाल को वैध बनाते दिख रहे हैं. जबकि भारत में 38 वर्ष से इसके ऊपर बैन है. इसमें बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि जब पश्चिमी देश वैध बना रहे हैं, तो भारत में यह गैर कानूनी क्यों है. भारत में भी इसका इस्तेमाल खुले तरीके से किया जा सकता था. वहीं 1985 के बाद से इसके ऊपर रोक लगा दी गई थी. वहीं सरकार की तरफ से 1985 में साइकोट्रोपिक सब्सटेंस, नारकोटिक ड्रग एक्ट पास किया गया था.

नारकोटिक एंव साइकोट्रोपिक क्या है

नारकोटिक एंव साइकोट्रोपिक इसके अनुसार किसी भी पदार्थ की खेती, ट्रांसपोर्ट, सेल, स्टोर के साथ कंजम्प्शन को बैन किया जाता है. साल 1985 में ये एक्ट लागू किया गया. जिसमें 6 चैप्टर एंव 83 सेक्शन हैं. इस एक्ट की मदद से भांग के पौधे जैसे अलग- अलग पौधे के उपयोग को गैरकानूनी एंव कानूनी होने की घोषणा की गई है. वहीं कानून में पौधे के फूल को गांजे के रूप में परिभाषित किया गया है. जिसका उपयोग एक अपराध है. जिसकी वजग से गांजे का उपयोग भी गैरकानूनी है.

कानून में इसकी सजा

भारत में इस नियम का उल्लंघन करने पर जुर्माना के साथ सजा का भी प्रावधान है. वहीं आपको इस जुर्म में एक साल से लेकर बीस साल तक की सजा दी जा सकती है. लेकिन भारत में भांग का उपयोग खुले तरीके से किया जाता है. प्रदेश में तो ये सरकारी ठेकों पर भी पाया जाता है. हमारे आस-पास के कई लोग इसका उपयोग करते नजर आते हैं.

भारत में कहां-कहां है गांजे का पौधा?

अगर भारत देश की बात करें तो यह पौधा हिमालय क्षेत्र की तलहटी एंव आसपास के मैदानों में, कश्मीर से लेकर असम राज्य तक पाया जाता है. वहीं इसे जंगली पौधे के हिसाब से देखा जाता है. जबकि कॉमर्शियली में इसका इस्तेमाल होता है. खेती के लिए खासकर अगस्त महीने में इसकी बीज बोई जाती है. वहीं सितंबर के अंत में पौधों की लम्बाई 6 से 12 इंच की हो जाती है. तब जाकर इसकी रोपाई शुरू होती है. नवंबर में पौधों की ट्रिमिंग की जाती है और निचली डालियों को काट दिया जाता है. आपको बता दें कि इसके बाद गांजे के मेल और फीमेल पौधे को अलग किया जाता है. आखिरकार जनवरी से फरवरी आते- आते ये गांजा उपयोग के लिए पूरी तरह तैयार हो चुका होता है.