ISRO: नए साल के खास दिन पर आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISHRO XPoSAT) सैटेलाइट लॉन्च कर इतिहास रचेगा. श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से सुबह 9 बजकर 10 मिनट पर लॉचिंग का समय निर्धारित किया गया. ऐसा करने वाला दुनिया का दूसरा देश बनेगा.
भारत XPoSat ब्लैक होल के रहस्य का पता लगाएगा. वेधशाला को XPoSat या एक्स-रे पोलारीमीटर सैटेलाइट कहा जाता है. ब्राह्मांड की खोज में एक साल से भी कम समय में यह भारत का तीसरा मिशन है बीते साल चंद्रमा पर पहुंच चुका भारत 2024 की शुरुआत ब्राह्मांड और इसके स्थाई रहस्यों में से एक यानी ब्लैक होल के बारे में जानकारी जुटाने में महत्वाकांक्षी प्रयास करने की कोशिश में है. देश एक उन्नत खगोल विज्ञान वेधशाला लॉन्च करने वाला दुनिया का दूसरा देश बनने जा रहा है. जो विशेष रूप से ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों के अध्ययन के लिए तैयार है.
मिशन के लिए रविवार सुबह 8:10 बजे से उलटी गिनती शुरू कर दी गई. प्रक्षेपण सुबह 09:10 बजे चेन्नई से 135 किमी दूर मौजूद श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष-अड्डे के प्रथम लॉन्च पैड से होगा. इसरो ने बताया कि एक्सपोसैट 5 साल काम करने के लिए बना है, यानी साल 2028 तक इसे काम में लिया जाएगा. प्रक्षेपण के लिए 44.4 मीटर ऊंचा पीएसएलवी-डीएल प्रारूप का रॉकेट बनाया गया है.
इसका लिफ्ट-ऑफ द्रव्यमान 260 टन होगा. यह सबसे पहले पृथ्वी से 650 किमी ऊंचाई पर एक्सपोसैट को स्थापित करेगा. यह करने के लिए इसे लिफ्ट-ऑफ के बाद 21 मिनट लगेंगे. यहां काम खत्म नहीं होगा. उसके बाद उपग्रहों को स्थापित करने के बाद वैज्ञानिक पीएसएलवी –सी 58 को पृथ्वी की और 350 किमी की ऊंचाई तक लाएंगे. इसके लिए रॉकेट में शामिल किए जा रहे चौथे चरण का उपयोग होगा. पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल -3 परीक्षण अंजाम दिया जाएगा. इसके साथ ही अप्रैल 2023 में पीएसएसलवी सी 55 रॉकेट के साथ भी इसरो ने पोयम परीक्षण किया था.
इसरो ने बताया है कि इस उपग्रह का लक्ष्य सुदूर अंतरिक्ष से जाने वाली गहन एक्स-रे का पोलराइजेशन यानी ध्रुवीकरण पता लगाना है. यह किस आकाशीय पिडं से आ रही है. यह रहस्य इन कारणों के बारे में काफी जानकारी देते हैं. पूरी दुनिया में एक्स –रे ध्रुवीकरण को जानने का महत्व बढ़ा है. यह पिंड या संरचनाएं ब्लैक होल, न्यूट्रॉन तारे (तारे में विस्फोट के बाद उसके बचे अत्यधिक द्रव्यमान वाले हिस्से), आकाशगंगा के केंद्र में मौजूद नाभिक आदि को समझने में मदद करता है इससे आकाशीय पिंडों के आकार और विकिकरण बनने की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलेगी.