नई दिल्ली : भारत ने मंगलवार को ऊर्जा बदलाव की दिशा में एक गहरी समझ विकसित करने का आह्वान करते हुए कहा कि प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने का कदम तभी उठाना चाहिए जब विकासशील देशों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सस्ती और प्रभावी ऊर्जा उपलब्ध हो.
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने ‘भारत ऊर्जा सप्ताह’ (आईईडब्ल्यू) के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि ऊर्जा बदलाव का मतलब किसी भी ईंधन का पूर्ण रूप से प्रतिस्थापन नहीं है, बल्कि एक ऊर्जा स्रोत की प्राथमिकता को दूसरे स्रोत पर स्थानांतरित करना है. उन्होंने कहा, "यह कदम केवल वहां उठाया जाना चाहिए जहां सस्ती और प्रभावी ऊर्जा उपलब्ध हो ताकि विकासशील देशों की ऊर्जा जरूरतें पूरी की जा सकें."
भारत जैसे विकासशील देशों के लिए कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन से अधिकांश ऊर्जा मांग पूरी होती है. हालांकि, प्रदूषणकारी ऊर्जा स्रोतों से हटकर नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में बढ़ने की बात कही जा रही है, लेकिन भारत का मानना है कि यह बदलाव एकदम से नहीं हो सकता है. पुरी ने यह स्पष्ट किया कि कोयला, तेल और गैस अभी भी ऊर्जा की आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, खासकर जब तक नवीकरणीय ऊर्जा की पर्याप्त उपलब्धता नहीं हो जाती.
पुरी ने कहा, "ऊर्जा बदलाव की अवधारणा के लिए एक गहरी समझ की आवश्यकता है. यह केवल एक ऊर्जा स्रोत को दूसरे से बदलने का मामला नहीं है, बल्कि एक ऊर्जा स्रोत की प्राथमिकता दूसरे स्रोत पर स्थानांतरित करने की प्रक्रिया है." उन्होंने यह भी कहा कि ऊर्जा बदलाव का मतलब यह नहीं है कि हाइड्रोकार्बन को रातों-रात समाप्त कर दिया जाए, बल्कि यह नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देते हुए, उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से एक रणनीतिक बदलाव होगा.
पुरी ने कहा कि आज जलवायु परिवर्तन कोई दूर का संकट नहीं रह गया है. यह अब गंभीर आपदाओं, जैसे जंगल की आग, बाढ़ और रिकॉर्डतोड़ तापमान के रूप में सामने आ रहा है, जो यह संकेत देते हैं कि दुनिया के पास समय कम होता जा रहा है. उन्होंने कहा कि इन घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि ऊर्जा बदलाव की दिशा में दीर्घकालिक प्रयासों को बनाए रखते हुए निकट-अवधि के लाभ को भी प्राथमिकता देनी होगी.
पुरी ने ऊर्जा बदलाव को न्यायसंगत बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया. उनका मानना था कि अगर ऊर्जा बदलाव के प्रयासों में न्याय का ध्यान नहीं रखा गया, तो यह सफल नहीं हो पाएगा, क्योंकि राजनीतिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य इसे स्वीकार नहीं करेंगे. उन्होंने कहा, "नई ऊर्जा व्यवस्था को आकार देने में ऊर्जा न्याय की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. यह उन सभी हितधारकों के लिए स्पष्ट हो गया है कि ऊर्जा न्याय ही इस बदलाव का केंद्रीय तत्व होना चाहिए."
हरदीप सिंह पुरी ने स्पष्ट किया कि ऊर्जा बदलाव एक लंबी और रणनीतिक प्रक्रिया है, जिसमें जीवाश्म ईंधन का स्थानांतरण अचानक नहीं हो सकता. नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देते हुए, उत्सर्जन को कम करने के लिए एक समग्र और न्यायपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है. उन्होंने यह भी बताया कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते संकट के मद्देनजर, दुनिया को अब और समय बर्बाद करने का जोखिम नहीं उठाना चाहिए.