MP News: मध्य प्रदेश के धार स्थित मां सरस्वती मंदिर भोजशाला को लेकर राज्य की हाई कोर्ट ने बढ़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट द्वारा आदेश के बाद अब ज्ञानवापी की तरह इस भोजशाला का भी पुरातात्विक सर्वेक्षण ( ASI सर्वे) किया जाएगा. बता दें कि हिन्दू पक्ष की तरफ से ASI सर्वे कराए जाने की मांग की गई थी. जिस पर सुनवाई करते हुए इंदौर हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. हिन्दू पक्ष की तरफ से भोजशाला में होने वाली नमाज पर रोक लगाने की मांग की गई थी.
बता दें, कि भोजशाला हो हिन्दू पक्ष वाग्देवी यानी मां सरस्वती का मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे कमाल मौला मस्जिद बताता है. इस संबंध में दोनों के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है.
एक हजार साल पहले धार में परमार वंश का शासन था. यहां पर 1000 से 1055 ईस्वी तक राजा भोज ने शासन किया. वे सरस्वती देवी के भक्त थे. उन्होंने 1034 ईस्वी में यहां पर एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में ‘भोजशाला’ के नाम से जाना जाने लगा. इसीलिए हिन्दू पक्ष इसे देवी सरस्वती का मंदिर मानता है.
वहीं हिंदू संगठन की तरफ से ऐसा दावा किया जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने इस भोजशाला को ध्वस्त कर दिया था. इसके बाद 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला की जगह मस्जिद बनवा दी. वहीं 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में भी मस्जिद का निर्माण करवाया. बताया जाता है कि 1875 में यहां पर खुदाई की गई थी. जिसमें सरस्वती देवी की एक प्रतिमा निकली. इस प्रतिमा को मेजर किनकेड नाम का अंग्रेज लंदन ले गया. फिलहाल ये प्रतिमा लंदन के संग्रहालय में है. हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में इस प्रतिमा को लंदन से वापस लाए जाने की मांग भी की गई है.
हिंदू संगठन भोजशाला को राजा भोज कालीन इमारत बताते हुए इसे सरस्वती का मंदिर मानते हैं. हिंदुओं का तर्क है कि राजवंश काल में यहां कुछ समय के लिए मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई थी. दूसरी ओर, मुस्लिम समाज का कहना है कि वो सालों से यहां नमाज पढ़ते आ रहे हैं. मुस्लिम इसे भोजशाला-कमाल मौलाना मस्जिद कहते हैं.
भोजशाला मंदिर में ASI सर्वेक्षण की अनुमति देने वाले मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले पर अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा, "आज इंदौर हाईकोर्ट ने ASI सर्वे का आदेश दिया है. अदालत ने ASI के निदेशक या अतिरिक्त निदेशक की अध्यक्षता में ASI सदस्यों की पांच सदस्यीय समिति का गठन किया जाए और छह सप्ताह के भीतर अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट पेश की जाए. 1991 का पूजा स्थल अधिनियम यहां लागू नहीं होता है क्योंकि यह एक ASI-संरक्षित स्मारक है और इसलिए इसे 1991 के अधिनियम से छूट प्राप्त है."