Ludhiana: पंजाब के लुधियाना से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का बहुत गहरा संबंध रहा है. इससे जुड़ी कई ऐसी यादें हैं जो, आज भी उनको लोगों के मध्य जिंदा रखी हुई है. उन्होंने चौड़ा बाजार से गोशाला तक स्वतंत्रता सेनानियों की टुकड़ी संग पैदल दांडी मार्च किया था. इस दरमियान उनके काफिले के पीछे- पीछे हजारों लोग जिंदाबाद के नारे लगाते हुए चलते थे. जबकि उनके निधन के उपरांत 12 फरवरी 1948 को फिल्लौर व लुधियाना के मध्य सतलुज नदी में उनकी अस्थियां बहाई गई थी. इसके साथ ही उनकी याद में गांव पंजढेर में स्मारक बना हुआ है. वहीं इनके स्मारक में 11 व्रत लिखे गए हैं, जिनका पालन कर लोग अपने जीवन को सार्थक कर सकते हैं.
महात्मा गांधी को देश की नदियों से अधिक प्यार था. यही वजह थी कि, 30 जनवरी 1948 को उनके निधन के उपरांत अस्थियों को कई कलशों में रखकर देश की अन्य नदियों में प्रवाहित किया गया था. उनका मुख्य अस्थि कलश प्रयागराज के गंगा नदी में प्रवाहित किया गया था. इसके साथ ही विसर्जन वाले स्थान पर स्मारक बना हुआ है.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी साल 1930 के 12 मार्च को 78 लोगों के साथ दांडी यात्रा पर निकले थे. इन लोगों को गांधीजी ने ही अपने साथ आने के लिए चुना था. जब इनकी आयु लगभग 16-25 वर्ष थी. जिनमें 6 कच्छ के, 3 पंजाब के, 4 केरल के, 2 बंबई के, तमिलनाडु, सिंध,नेपाल, आंध्र, उत्कल, बिहार, बंगाल,कर्नाटक, 32 गुजरात प्रांत के एक-एक सत्याग्रही मौजूद थे.
गांधीजी ने यात्रा के दरमियान 11 नदियां पार की थीं. बापू ने वांज, डिंडौरी,सूरत, धमन के उपरांत नवसारी को यात्रा के आखिरी दिनों में अपना पड़ाव चुना था. जबकि उन्होंने 6 अप्रैल को दांडी में नमक कानून तोड़ा एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत कर दी. जबकि देखते ही देखते देश के अलग- अलग भागों में आंदोलन तेजी से फैल गया, जिसके बाद साल 1931 में गांधी-इरविन के मध्य समझौते हो गए थे.