Muslim Marriage: मुस्लिम पुरुष कर सकते हैं एक से ज्यादा शादी! लेकिन सभी पत्नियों का रखना होगा समान ख्याल

Muslim Marriage: मद्रास हाई कोर्ट ने एक तलाक के मामले में सुनवाई के दौरान इस्लामिक विवाह कानून को लेकर टिप्पणी की है. हाई कोर्ट ने एक से ज्यादा विवाह की स्थिति में सभी पत्नियों से समान व्यवहार न रखने को क्रूरता की श्रेणी में रखा.

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हाइलाइट्स

  • अच्छा माहौल न मिले तो महिला को ससुराल से अलग रहने का है अधिकार
  • क्रूरता के आधार पर महिला ले सकती है तलाक

Muslim Law of Polygamy: शरीयत और आईपीसी की धारा 494 के तहत मुस्लिम पुरुषों को एक से ज्यादा शादी करने की इजाजत है. मुस्लिम धर्म को छोड़ दें तो शायद अब दुनिया में कोई ऐसा धर्म नहीं है, जिसमें पुरुषों को बहुविवाह का अधिकार प्राप्त है. इसके साथ ही अन्य समुदायों की तुलना में मुस्लिम समुदाय में तलाक की घटनाएं भी ज्यादा पायी जाती हैं.

कई बार एक से ज्यादा विवाह के कारण महिलाओं की प्रताड़ना के किस्से भी देखने को मिलते हैं. लेकिन अमूमन समाज और धर्म के डर से महिलायें इन शादियों से मुक्त नहीं हो पाती हैं और किसी सामान, घर की नौकर या मन होने पर भोग-विलास की वस्तु की तरह घर में पड़े रहने को मजबूर होती है. लेकिन 28 दिसम्बर को मद्रास हाई ने एक मामले की सुनवाई के दौरान जो टिप्पणी की है, उससे कई पीड़ित महिलाओं को इस यातना से मुक्त होने का रास्ता मिलेगा . 

सभी पत्नियों से समान व्यवहार न करना "क्रूरता"

मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि इस्लामिक कानून के अनुसार, पुरुषों को बहुविवाह यानि कि एक से अधिक विवाह करने की इजाजत है.  हाई कोर्ट ने एक तलाक के मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि "मुस्लिम पुरुषों को इस्लामिक कानून के तहत बहुविवाह का अधिकार है, लेकिन ऐसी स्थिति में पुरुषों को सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार करना होगा. पति का कर्तव्य है कि वो अपनी पत्नी की अच्छी तरह से देखभाल करे". इसके साथ ही कोर्ट ने सभी पत्नियों से एक समान व्यवहार न करने को क्रूरता बताया है. 

'सभी पत्नियों से समान व्यवहार जरूरी'

एक मुस्लिम महिला ने अपने पति पर गलत व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए तलाक की मांग की थी. जांच के दौरान कोर्ट ने पाया कि पहली पत्नी के साथ उसके पति और सास का व्यवहार क्रूरता से भरा था. जिसके बाद तिरुनेलवेली फैमिली कोर्ट ने महिला को तलाक देने का फैसला सुनाया था. इस फैसले को महिला के पति ने मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. लेकिन हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि इस्लामी कानून में मुस्लिम पुरुष को चार शादियां करने की अनुमति है लेकिन उसके लिए सभी पत्नियों के साथ समान तरीके से व्यहार करना जरूरी है.

मामले के बारे में बोलते हुए जस्टिस आरएमटी टीका रमण और जस्टिस पीबी बालाजी की पीठ ने कहा "पुरुष ने अपनी पहली और दूसरी पत्नी के साथ समान व्यवहार नहीं किया. पहली पत्नी को क्रूरता का सामना करना पड़ा. पति दो साल तक पत्नी का भरण-पोषण करने में और तीन साल तक वैवाहिक दायित्व निभाने में नाकाम रहा है.

'क्रूरता के आधार पर ले सकती है तलाक'

इस मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पाया कि पीड़ित महिला के साथ गर्भावस्था के दौरान बहुत बुरा व्यवहार किया गया. उसके पति के साथ ही ससुराल वालों ने बहुत प्रताड़ित किया, जिससे तंग आकर महिला ने ससुराल छोड़ दिया. मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि पुरुष ने अपनी पहली पत्नी और दूसरी पत्नी से एक तरह से व्यवहार नहीं किया , जबकि इस्लामिक कानून के अनुसार, पुरुष के लिए ये जरूरी है कि वो अपनी सभी पत्नियों को एक जैसे रखे. इसके साथ ही मद्रास हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि एक बार पुरुष द्वारा क्रूरता साबित होने पर महिला तलाक मांग सकती है.

'अगर ससुराल का माहौल ठीक नहीं तो महिला रह सकती है अलग' 

क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग को जायज बताने के साथ ही हाई कोर्ट ने महिला को अपने ससुराल से अलग रहने का भी अधिकार दिया है. हाई कोर्ट के अनुसार, अगर किसी मुस्लिम महिला को अपनी ससुराल में अच्छा माहौल नहीं मिलता है तो उसके पास अलग रहने का अधिकार है. हालांकि दूसरी ओर पीड़ित महिला के पति का कहना है कि सिर्फ दूसरी शादी कर लेने से महिला को तलाक नहीं मिल सकता है.