कानून की आंखों पर अब कोई पट्टी नहीं! 'न्याय की देवी' की नई प्रतिमा हुई स्थापित

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की लाइब्रेरी में 'न्याय की देवी' की नई प्रतिमा स्थापित की गई. जिसमें आंखें खुली हैं और बाएं हाथ में तलवार की जगह पर संविधान है.

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Courtesy: Social Media

Lady Justice: सुप्रीम कोर्ट में एक बड़ा बदलाव किया गया है. न्याय की देवी के आंखों से पट्टी हटा दी गई है. साथ ही उनके हाथों में तलवार की जगह संविधान ने ले लिया है. यह फैसला इसलिए लिया गया है कि लोगों में यह संदेश जाए कि देश का कानून अंधा नहीं है. हालांकि आंखों पर पट्टी का मतलब यह है कि अदालत अपने सामने आने वाले लोगों की संपत्ति, शक्ति या स्थिति के अन्य चिह्नों को नहीं देख सकती हैं. जबकि तलवार अधिकार और अन्याय को दंडित करने की शक्ति के रूप में देखा जा सकता है. 

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की लाइब्रेरी में नई प्रतिमा स्थापित की गई. जिसमें आंखें खुली हैं और बाएं हाथ में तलवार की जगह पर संविधान है. पिछले कुछ दिनों में भारतीय न्याय में कई बदलाव आए हैं. यह ठीक वैसे ही है जैसे भारतीय दंड संहिता बदलकर अब भारतीय न्याय संहिता कर दिया गया है. 

ब्रिटिश विरासत से आगे बढ़ने की जरुरत

सूत्रों के मुताबिक डीवाई चंद्रचूड़ मानते हैं कि भारत को ब्रिटिश विरासत से आगे बढ़ने की जरुरत है. कानून कभी अंधा नहीं होता बल्कि यह सबको समान रुप से देखता है. जिसकी वजह से न्याय की देवी के स्वरूप को बदलना चाहिए. उन्होंने संदेश दिया था कि न्याय की देवी के हाथों में तलवार नहीं ब्लकि संविधान होना चाहिए, जिससे की यह संदेश जाए कि कानून संविधान के अनुसार न्याय करती है. हिंसा का यहां कोई आधार नहीं है. तलवार को हिंसा के रुप में देखा जाता है और न्यायालय कानून पर चलता है इसलिए इसकी जरुरत नहीं है. 

सभी को बराबरी का मौका

न्याय की देवी के दाहिने हाथों में तराजू है. जो समाज के संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है. चाहे आरोपी पर कितना बड़ा आरोप क्यों ना हो या फिर परिवादी कितनी भी समस्या में क्यों ना हो न्यालय दोनों की बातों, तथ्यों और तर्कों को बराबरी से सुनता है. सभी को अपनी बात रखने का बराबरी का मौका देता है. सुनने और समझने के बाद ही किसी भी मुद्दे पर निष्कर्ष निकालता है. 

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