Punjab: हरियाणा के कॉलेजों को पीयू (पंजाब यूनिवर्सिटी) से संबद्ध करने का मुद्दा बीते दिन अमृतसर में आयोजित कार्यक्रम उत्तर क्षेत्रीय परिषद (एनजेडसी) की बैठक के दौरान गरमा उठा. हरियाणा के सीएम मनोहर लाल के साथ चंडीगढ़ के प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित ने जहां बैठक में इसकी अनुशंसा की, इसके साथ ही पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने इस प्रस्ताव को सीधे खारिज कर दिया.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और पंजाब के सीएम के साथ चंडीगढ़ व जम्मू-कश्मीर के प्रशासक भी मौजूद रहे. इसी दरमियान हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने हरियाणा के कॉलेजों को पीयू (पंजाब यूनिवर्सिटी) से संबद्ध करने का मुद्दा उठाया. वहीं इसे पंजाब के सीएम भगवंत मान ने खारिज करते हुए बताया कि, ये पंजाब की विरासत है. आगे कहा कि बीते 50 वर्षों से हरियाणा ने कॉलेजों की संबद्धता का मुद्दा नहीं उठाया था. परन्तु अब इसकी क्या जरूरत पड़ गई. उन्होंने कहा कि इस मामले को भविष्य के लिए भी खत्म किया जाए.
पंजाब सरकार की तरफ से पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) के वित्तीय घाटे को भी दूर कर दिया गया है. वहीं इसके लिए ग्रांट इन एड को बढ़ाकर 94.13 करोड़ रूपए किया गया है. जिससे यूनिवर्सिटी में नए हॉस्टलों के निर्माण को लेकर भी पंजाब की तरफ से फंड जारी किया गया है. सीएम मान ने मांग करते हुए कहा कि, केंद्र सरकार भी पीयू के लिए यूजीसी पे-स्केल का फंड जारी करे.
आपको बता दें कि चंडीगढ़ में चार माहीनें पूर्व पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित की तरफ से पीयू (पंजाब यूनिवर्सिटी) में पंजाब के साथ हरियाणा के शेयर को लेकर बैठक आयोजित की गई थी. इसके बाद से हरियाणा के मुख्यमंत्री ने बताया कि, पंजाब पुनर्गठन अधिनियम-1966 के मुताबिक पीयू में हरियाणा को इसका हिस्सा बनाया गया था. जबकि हरियाणा के कॉलेज पीयू से संबद्ध थे, परन्तु साल 1973 को एक अधिसूचना जारी करके समाप्त किया गया था.
मुख्यमंत्री मान ने देश में सही मायनों में संघीय ढांचे की जरूरत की बात करते हुए बताया कि, सभी राजनीतिक परिपेक्ष्य में ये बात पूरी तरह महसूस हो रही है कि, प्रदेशों को अधिक वित्तीय और राजनीतिक शक्ति दी जाएं. उनका कहना है कि, इस पक्ष पर सारे राज्य सरकारों को अपनी विकास प्राथमिकताओं के चयन के साथ राजस्व के लिए कार्य करने को लेकर अधिक छूट की जरूरत है. आगे सीएम कहते हैं कि, संघवाद हमारे संविधान के बुनियादी सिद्धांतों में से एक है, परन्तु दुर्भाग्य ये पिछले 75 सालों में इस अधिकार पर केंद्रीयकरण का रुझान देखा गया है, यह बात हर कोई जानता है कि, आधुनिक युग में राज्य सरकारें अपने लोगों की समस्याओं को समझने एवं हल करने के लिए तैयार है.