Ram Mandir: 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा और भव्य राम मंदिर का उद्घाटन होने में अब कुछ दिन ही शेष बचे हैं. इस मौके पर अयोध्या में लाखों की संख्या में राम भक्त पहुँचने वाले हैं. रामलला के आगमन को लेकर लोग अभी से ही अयोध्या में जुटने लगे हैं. ऐसे ही एक राम भक्त हैं हैदराबाद के 64 वर्षीय चल्ला श्रीनिवास शास्त्री. चल्ला श्रीनिवास शास्त्री ने 8000 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके अयोध्या आने का संकल्प किया है. श्रीनिवास शास्त्री ने रामेश्वरम से अपनी यात्रा शुरू की थी और वो 6 जनवरी को अयोध्या से 272 किमी दूर चित्रकूट तक पहुंच गए.
8000 किलोमीटर की पैदल अयोध्या यात्रा पर निकले श्रीनिवास शास्त्री अपने साथ भगवान राम को भेंट देने के लिए सोने से बने जड़ाऊ खड़ाऊ लेकर चले हैं. यात्रा के दौरान वो इस खड़ाऊ को अपने सिर पर लेकर चल रहे हैं. इस खड़ाऊ की कीमत करीब 65 लाख रुपए है. अयोध्या पहुँचने के बाद श्रीनिवास शास्त्री इस खड़ाऊ को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप देंगे.
श्रीनिवास शास्त्री ने अपनी पैदल यात्रा 20 जुलाई को शुरू की थी. इस दौरान वो भगवान राम के 'वनवास' को दर्शाते हुए अयोध्या-रामेश्वरम रूट को फॉलो कर रहे हैं. यात्रा के दौरान उन्होंने ओडिशा में पुरी, महाराष्ट्र में त्र्यंबक और गुजरात में द्वारका जैसे महत्वपूर्ण स्थानों का भ्रमण करने के साथ ही रास्ते में भगवान राम की ओर से स्थापित शिवलिंगों पर भी रुके. 6 जनवरी को चित्रकूट पहुंचे श्रीनिवास शास्त्री का लक्ष्य अगले 10 दिनों में अयोध्या पहुँचने का है.
अपनी पैदल यात्रा के दौरान सिर पर पाँच धातुओं से बने जड़ाऊ खड़ाऊ लेकर चल रहे श्रीनिवास शास्त्री ने इससे पहले भी राम मंदिर के लिए चांदी की पांच ईंटें दान किया था. उनके साथ इस यात्रा में पाँच और भी लोग शामिल हैं. इसके साथ ही श्रीनिवास शास्त्री स्थायी रूप से अयोध्या में ही बसने की योजना बना रहे हैं.
चल्ला श्रीनिवास शास्त्री ने अपनी यात्रा के बारे में बताया कि उन्हें बीच में किसी काम से ब्रिटेन जाना पड़ा, इस वजह से उन्हें कुछ दिन के लिए यात्रा रोकनी पड़ी थी. लेकिन वापस आने के बाद उन्होंने अपनी यात्रा उसी जगह से शुरू की थी, जहां तमिलनाडु में उन्होंने छोड़ी थी.
इसके साथ ही उन्होंने अपने पिता के बारे में बताया कि उनकी इच्छा थी कि अयोध्या में राम मंदिर बने. उन्होंने बताया कि "मेरे पिता ने अयोध्या में 'कार सेवा' में भाग लिया था. वह भगवान हनुमान के बहुत बड़े भक्त थे. उनकी इच्छा थी कि अयोध्या में राम का मंदिर बने. अब मेरे पिता इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन मैंने उनकी इच्छा पूरी करने का फैसला किया."