Ayodhya Ram Mandir: 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर के उद्घाटन और रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर अयोध्या सजने लगी है. इस दिन के लिए अयोध्या को त्रेतायुग की तर्ज पर सजाया जा रहा है. पूरे देश में इसे लेकर जोर-शोर से तैयारियां चल रही है. देश-विदेश के लोगों को कार्यक्रम में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेजा जा चुका है. प्रधानमंत्री मोदी खुद इस मौके पर अयोध्या में मौजूद रहेंगे. श्रीराम मंदिर का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी के हाथों ही होने वाला है. इस लिए मुख्य यजमान प्रधानमंत्री मोदी इस दिन व्रत रखने वाले हैं.
राम मंदिर के उद्घाटन को लेकर सारी तैयारियां पूरी की जा रही है. जानकारी के अनुसार, गुप्त मतदान के द्वारा राम मंदिर के लिए मूर्ति का चयन भी कर लिया गया है. इस खास दिन प्रधानमंत्री उपवास रखने वाले हैं. इसके साथ ही, 16 जनवरी को पूजा के मुख्य यजमान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संकल्पित अक्षत अयोध्या पहुंचाया जाएगा. अक्षत अयोध्या पहुँचने के बाद ही सात दिवसीय अनुष्ठान शुरू होगा. जबकि अभी से ही अयोध्या में चारों वेदों की सभी शाखाओं का परायण यज्ञ जारी है. 15 जनवरी तक वैदिक विद्वान इस यज्ञ को करेंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जनवरी को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा वाले दिन व्रत रखेंगे. इसे लेकर पूरे देश में चर्चा चल रही है. विद्वानों का कहना है कि शास्त्रीय विधि परंपरा के अनुसार, यजमान को पूरे दिन उपवास रखकर सभी धार्मिक अनुष्ठान पूरे करने होते हैं. चूंकि प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम प्रधानमंत्री मोदी करने वाले हैं, इसलिए वह पूरे दिन उपवास रखेंगे.
विद्वानों के अनुसार, प्राण-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में यजमान के लिए पवित्र नदियों में स्नान करना जरूरी माना गया है. ऐसे में माना जा रहा है कि पीएम मोदी भी सरयू में स्नान कर सकते हैं. इसकी आशंका इसलिए भी ज्यादा जताई जा रही है क्योंकि 13 दिसम्बर 2021 को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण के वक्त पीएम नरेंद्र मोदी ने गंगा में डुबकी लगाई थी और पूजा-पाठ किया था. इसलिए ये माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी इस पावन मौके पर सरयू में डुबकी लगा सकते हैं.
अयोध्या के हनुमत निवास के महंत मिथिलेश नंदनी शरण ने प्रधानमंत्री मोदी के व्रत रखने पर खुशी जताते हुए प्राण-प्रतिष्ठा से जुड़े विधियों के बारे में भी बताया. उन्होंने कहा कि शास्त्रीय विधि परम्परा के अनुसार, किसी मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के समय सबसे पहले प्रायश्चित का अनुष्ठान होता है. इसके बाद संकल्प, बाद में देवता के अंगों का न्यास और पूजन मंत्रों के साथ किया जाएगा.
इसके साथ ही उन्होंने अनुष्ठान के बारे में बताते हुए कहा कि इसके बाद विग्रह का अन्न में अधिवास, फल में अधिवास, जल में अधिवास कराया जाएगा. फिर महास्नान और परिभ्रमण के बाद दूसरी जरूरी क्रियाएं और अनुष्ठान पूरे किए जाते हैं.
अनुष्ठान की विधियों के बारे में जानकारी देते हुए महंत मिथिलेश नन्दनी शरण ने बताया कि अनुष्ठान से पहले प्रायश्चित करना क्यों जरूरी है? उन्होंने कहा कि किसी भी मंदिर के निर्माण के दौरान ढेरो पेड़-पौधे, पहाड़ कटते हैं. जीव-जंतु और पर्यावरण की हानि होती है. इसी को देखते हुए प्रायश्चित करना होता है. उन्होंने बताया कि प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान की जाने वाली ये एक जरूरी क्रिया है, जो हर प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान यजमान को करनी होती है.