मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की दो महीने पर होने वाली बैठक बुधवार को शुरू हुई. उम्मीद है कि इस बार एमपीसी शुक्रवार को पेश होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर रेपो में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकती है.
रिजर्व बैंक ने इससे पहले मई, 2020 में रेपो दर को 0.40 प्रतिशत घटाकर चार प्रतिशत किया था. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि अर्थव्यवस्था को कोविड महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन के संकट से निपटने में मदद मिल सके.
आरबीआई ने मई 2020 में कोरोना महामारी और लॉकडाउन के असर से निपटने के लिए रेपो दर में 0.40 प्रतिशत की कटौती की थी, जिसके बाद यह दर 4 प्रतिशत हो गई थी. इसके बाद, मई 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए नीतिगत दर में वृद्धि का सिलसिला शुरू हुआ, जो मई 2023 में रुक गया. वर्तमान में रेपो दर 6.5 प्रतिशत है, और विशेषज्ञ मानते हैं कि इस दर में कटौती अर्थव्यवस्था को और गति देने के लिए जरूरी हो सकती है.
इस बैठक की अध्यक्षता आरबीआई के नवनियुक्त गवर्नर संजय मल्होत्रा करेंगे. यह उनका पहला मौद्रिक नीति निर्णय है, और इस निर्णय का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. समिति का निर्णय सात फरवरी, शुक्रवार को सार्वजनिक किया जाएगा.
विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा परिस्थिति नीतिगत दर में कटौती के लिए अनुकूल है. केंद्रीय बजट में उपभोक्ता मांग को बढ़ावा देने के लिए कई उपायों का ऐलान किया गया है, और ये उपाय नीतिगत दर में कटौती से और प्रभावी हो सकते हैं. एसबीआई की शोध रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2025 तक मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान है, जिससे दर में कटौती का समर्थन मिलता है.
एसबीआई के आर्थिक विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी 2025 में नीतिगत दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की उम्मीद जताई जा रही है. इसके बाद, अप्रैल 2025 तक कुल 0.75 प्रतिशत तक की कटौती की जा सकती है, और अक्टूबर 2025 से नीतिगत दर में कटौती का दूसरा दौर शुरू हो सकता है.
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर के अनुसार, केंद्रीय बजट से मुद्रास्फीति पर कोई बड़ा असर नहीं होगा. हालांकि, अगर वैश्विक कारकों के कारण रुपये की विनिमय दर और कमजोर होती है, तो नीतिगत दर में कटौती अप्रैल 2025 तक टल सकती है.
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