आरबीआई ने पांच साल बाद रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कमी की, ईएमआई घटने की उम्मीद

मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को अपने मौद्रिक नीति फैसलों में एक अहम कदम उठाया और रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की घोषणा की. यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए लिया गया है और इसके परिणामस्वरूप, विभिन्न प्रकार के कर्जों पर मासिक किस्तें (ईएमआई) घटने की संभावना है. यह कटौती करीब पांच साल बाद की गई है, जब आरबीआई ने पिछली बार रेपो दर को बदला था.

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Courtesy: social media

मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को अपने मौद्रिक नीति फैसलों में एक अहम कदम उठाया और रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की घोषणा की. यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए लिया गया है और इसके परिणामस्वरूप, विभिन्न प्रकार के कर्जों पर मासिक किस्तें (ईएमआई) घटने की संभावना है. यह कटौती करीब पांच साल बाद की गई है, जब आरबीआई ने पिछली बार रेपो दर को बदला था.

आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का निर्णय

आरबीआई के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने इस फैसले को आम सहमति से लिया. यह निर्णय तीन दिनों की बैठक के दौरान लिया गया था. साथ ही, समिति ने अपने रुख को "तटस्थ" बनाए रखने का निर्णय भी लिया है.

रेपो दर वह दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपने तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं. इस दर को घटाने का मतलब है कि बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो सकता है, जिससे ग्राहकों को आवास, कार, और व्यक्तिगत कर्जों पर कम ब्याज दरों का लाभ मिल सकता है.

रेपो दर और इसके प्रभाव

जब रेपो दर बढ़ती है, तो कर्ज की लागत बढ़ जाती है, जिससे ग्राहकों को अधिक ब्याज देना पड़ता है. वहीं, जब रेपो दर घटती है, तो बैंक ग्राहकों को कम ब्याज दर पर कर्ज देने के लिए प्रेरित होते हैं, जिससे ईएमआई में कमी आ सकती है. इसके अलावा, रेपो दर बचत और निवेश उत्पादों के रिटर्न को भी प्रभावित करती है. उच्च रेपो दर से बैंक जमा योजनाओं पर अधिक ब्याज देते हैं, जबकि कम रेपो दर से ये रिटर्न घट सकते हैं.

महंगाई और आर्थिक वृद्धि के अनुमान

आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने आगामी वित्त वर्ष के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है. साथ ही, उन्होंने मुद्रास्फीति को 4.2 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान भी व्यक्त किया है. आरबीआई ने सरकार के 6.4 प्रतिशत के आर्थिक वृद्धि अनुमान को बरकरार रखा है, जो पिछले चार वर्षों में सबसे कम है.

मुद्रास्फीति में कमी और भविष्य की उम्मीदें

मल्होत्रा ने कहा, “महंगाई में गिरावट आई है, और खाद्य पदार्थों की स्थिति में सुधार हुआ है. पिछले मौद्रिक नीति फैसलों का असर दिख रहा है और हम उम्मीद करते हैं कि मुद्रास्फीति धीरे-धीरे 4 प्रतिशत के लक्ष्य के करीब आएगी.”

उन्होंने यह भी कहा कि वृद्धि दर में सुस्ती का असर देखा गया है, लेकिन मुद्रास्फीति के नियंत्रण में रहते हुए, वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत दर में कमी का निर्णय लिया गया.

एमपीसी का तटस्थ रुख और भविष्य के फैसले

मल्होत्रा ने बताया कि मौजूदा वृद्धि-मुद्रास्फीति स्थिति को ध्यान में रखते हुए, एमपीसी ने तटस्थ रुख अपनाने का फैसला लिया है. समिति का मानना है कि कम प्रतिबंध वाली मौद्रिक नीति इस समय अधिक उपयुक्त है. आगामी बैठकों में व्यापक आर्थिक परिप्रेक्ष्य के आधार पर नीतिगत निर्णय लिए जाएंगे.

आगे की दिशा: रेपो दर में और कटौती की संभावना

डीबीएस बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री राधिका राव ने कहा कि मौद्रिक नीति में लचीलापन दिखाने से यह साफ है कि एमपीसी वैश्विक कारकों के प्रभाव में घरेलू प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए नरम रुख अपना सकता है. उन्होंने आगे अनुमान जताया कि अप्रैल में रेपो दर में और 0.25 प्रतिशत की कटौती हो सकती है.

आरबीआई का यह कदम भारतीय उपभोक्ताओं के लिए राहत की खबर लेकर आया है, खासकर उन लोगों के लिए जिनके पास होम लोन, कार लोन या व्यक्तिगत लोन हैं. इसके अलावा, देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए यह फैसला उम्मीदों के अनुरूप साबित हो सकता है.

(इस खबर को भारतवर्ष न्यूज की टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की हुई है)

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