Mother Teresa: मदर टेरेसा उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं, जिन्होंने अपना सारा जीवन मानवता पर न्यौछावर कर दिया. दुनिया आज भी उनका नाम उसी सम्मान और प्रेम के साथ लेती है. जब भी उनका नाम आता है तो हर किसी के दिमाग में नीली बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहने एक महिला याद आती है. इस दयावान और सौम्य महिला का नाम 'अगनेस गोंझा बोयाजिजू'था. जिनको लोगों ने मदर टेरेसा नाम दिया. वे हर व्यक्ति को मां की तरह प्यार देती थीं. उन्होंने अपना जीवन पूरी मानवता के नाम कर दिया और कभी भी शादी नहीं की.
कई लोग इस बात को सोचते हैं कि आखिरकार मदर टेरेसा ने शादी क्यों नहीं की. जानकारी के अनुसार अपने परिवार की सबसे छोटी बेटी 'अगनेस गोंझा बोयाजिजू'12 साल की उम्र में प्रार्थना करने पहुंची और उन्हें पहली बार एक सुखद अनुभूति की प्राप्ति हुई. जब मदर टेरेसा छोटी थीं तो तब से उनका झुकाव आध्यात्म और समाज की भलाई के कामों लगता था. 12 साल की उम्र में जब वे 15 अगस्त 1928 को विटिना के ब्लैक मैडोना श्राइन में प्रार्थना करने पहुंची तो उन्होंने फैसला किया कि वो बंगाल के अन्य मिशनरियों की तरह काम करेंगी.
मदर टेरेसा ने 18 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया था. उन्होंने सिस्टर ऑफ लोरेटो से अंग्रेजी भाषा सीखी थी. साल 1929 में वे भारत आ गईं. यहां दार्जिलिंग में रहते हुए उन्होंने एक स्कूल में टीचर के रूप में काम किया और इसके साथ ही बंगाली भाषा सीखी. इसके बाद 1931 में उन्होंने अपनी पहली रिलीजियस प्रतिज्ञा नन के रूप में ली. इसके साथ ही उन्हें टेरेसा नाम मिला. इसके बाद 1937 में उन्होंने अपनी अंतिम प्रतिज्ञा ली. इसके बाद उनको मदर टेरेसा के नाम से जाना जाने लगा.
मदर टेरेसा का मानना था कि अगर वे शादी या खुद का परिवार आगे बढ़ाती हैं तो वे अपने असली मकसद से भटक जाएंगी. उनके लिए सिर्फ एक ही रिश्ता मायने रखता था और ईश्वर और उनका रिश्ता था. वे जीवनभर गरीब, दुखी और बीमार की मदद करती रहीं.