Urdu Shayari: बहुत से ख़्वाब देखोगे तो आँखें, तुम्हारा साथ देना छोड़ देंगी
ख़याल
तिरे ख़याल के हाथों कुछ ऐसा बिखरा हूँ, कि जैसे बच्चा किताबें इधर उधर कर दे
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मक़ाम
ये किस मक़ाम पे लाई है मेरी तन्हाई, कि मुझ से आज कोई बद-गुमाँ नहीं होता
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परिंदे
थके-हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटें,सलीक़ा-मंद शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है
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नशा
भरे मकाँ का भी अपना नशा है क्या जाने,शराब-ख़ाने में रातें गुज़ारने वाला
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आँसू
क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता,आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता
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ब'अद
मैं उस को आँसुओं से लिख रहा हूँ,कि मेरे बअद कोई पढ़ न पाए
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फ़ासले
जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है बरसों से,कहीं हयात इसी फ़ासले का नाम न हो
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