Urdu Shayari: ये कैसी बिछड़ने की सज़ा है,आईने में चेहरा रख गया है
शहर
खा गया इंसाँ को आशोब-ए-मआश,आ गए हैं शहर बाज़ारों के बीच
Credit: freepik
सैलाब
अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद,तो एक अब्र भी सैलाब के बराबर है
Credit: freepik
आनी-जानी
तुम अपने रंग नहाओ मैं अपनी मौज उड़ूँ,वो बात भूल भी जाओ जो आनी-जानी हुई
Credit: freepik
आँसू
दोस्तो जश्न मनाओ कि बहार आई है,फूल गिरते हैं हर इक शाख़ से आँसू की तरह
Credit: freepik
बिछड़ा
मुझ से मिरा कोई मिलने वाला,बिछड़ा तो नहीं मगर मिला दे
Credit: freepik
ख़ुदा
जो आ रही है सदा ग़ौर से सुनो उस को,कि इस सदा में ख़ुदा बोलता सा लगता है
Credit: freepik
दिल
शिकस्ता-हाल सा बे-आसरा सा लगता है,ये शहर दिल से ज़ियादा दुखा सा लगता है
Credit: freepik
View More Web Stories