Urdu Shayari: ये कैसी बिछड़ने की सज़ा है,आईने में चेहरा रख गया है


2024/08/01 14:05:28 IST

शहर

    खा गया इंसाँ को आशोब-ए-मआश,आ गए हैं शहर बाज़ारों के बीच

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सैलाब

    अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद,तो एक अब्र भी सैलाब के बराबर है

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आनी-जानी

    तुम अपने रंग नहाओ मैं अपनी मौज उड़ूँ,वो बात भूल भी जाओ जो आनी-जानी हुई

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आँसू

    दोस्तो जश्न मनाओ कि बहार आई है,फूल गिरते हैं हर इक शाख़ से आँसू की तरह

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बिछड़ा

    मुझ से मिरा कोई मिलने वाला,बिछड़ा तो नहीं मगर मिला दे

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ख़ुदा

    जो आ रही है सदा ग़ौर से सुनो उस को,कि इस सदा में ख़ुदा बोलता सा लगता है

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दिल

    शिकस्ता-हाल सा बे-आसरा सा लगता है,ये शहर दिल से ज़ियादा दुखा सा लगता है

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