Urdu Shayarai: बात तक करनी न आती थी तुम्हें, ये हमारे सामने की बात है
रियाज़ ख़ैराबादी
कहती है ऐ रियाज़ दराज़ी ये रीश की, टट्टी की आड़ में है मज़ा कुछ शिकार का
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जिगर मुरादाबादी
हज्व ने तो तिरा ऐ शैख़ भरम खोल दिया, तू तो मस्जिद में है निय्यत तिरी मय-ख़ाने में
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अमीर मीनाई
मिली है दुख़्तर-ए-रज़ लड़-झगड़ के क़ाज़ी से, जिहाद कर के जो औरत मिले हराम नहीं
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अर्श मलसियानी
पी लेंगे ज़रा शैख़ तो कुछ गर्म रहेंगे, ठंडा न कहीं कर दें ये जन्नत की हवाएँ
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अकबर इलाहाबादी
मरऊब हो गए हैं विलायत से शैख़-जी, अब सिर्फ़ मनअ करते हैं देसी शराब को
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कलीम आजिज़
उठते हुओं को सब ने सहारा दिया कलीम, गिरते हुए ग़रीब सँभाले कहाँ गए
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