Urdu Shayarai: बात तक करनी न आती थी तुम्हें, ये हमारे सामने की बात है


2024/08/29 13:59:40 IST

रियाज़ ख़ैराबादी

    कहती है ऐ रियाज़ दराज़ी ये रीश की, टट्टी की आड़ में है मज़ा कुछ शिकार का

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जिगर मुरादाबादी

    हज्व ने तो तिरा ऐ शैख़ भरम खोल दिया, तू तो मस्जिद में है निय्यत तिरी मय-ख़ाने में

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अमीर मीनाई

    मिली है दुख़्तर-ए-रज़ लड़-झगड़ के क़ाज़ी से, जिहाद कर के जो औरत मिले हराम नहीं

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अर्श मलसियानी

    पी लेंगे ज़रा शैख़ तो कुछ गर्म रहेंगे, ठंडा न कहीं कर दें ये जन्नत की हवाएँ

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अकबर इलाहाबादी

    मरऊब हो गए हैं विलायत से शैख़-जी, अब सिर्फ़ मनअ करते हैं देसी शराब को

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कलीम आजिज़

    उठते हुओं को सब ने सहारा दिया कलीम, गिरते हुए ग़रीब सँभाले कहाँ गए

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