Urdu Shayari: तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं, जान बहुत शर्मिंदा हैं
ख़ुमार बाराबंकवी
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम, क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
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कैफ़ी आज़मी
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं, दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
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इफ़्तिख़ार आरिफ़
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं, जान बहुत शर्मिंदा हैं
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अहमद फ़राज़
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ, अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ
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बशीर बद्र
इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी,लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे
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जौन एलिया
क्या कहा इश्क़ जावेदानी है!, आख़िरी बार मिल रही हो क्या
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साहिर लुधियानवी
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ,मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
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