Urdu Shayari: ख़्वाब में नाम तिरा ले के पुकार उठता हूँ,बे-ख़ुदी में भी मुझे याद तिरी याद की है
रज़ा हमदानी
पास-ए-आदाब-ए-वफ़ा था कि शिकस्ता-पाई, बे-ख़ुदी में भी न हम हद से गुज़रने पाए
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मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मेरे और यार के पर्दा तो नहीं कुछ लेकिन,बे-ख़ुदी बीच में दीवार हुआ चाहती है
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हैदर अली आतिश
पा-ब-गिल बे-ख़ुदी-ए-शौक़ से मैं रहता था,कूचा-ए-यार में हालत मिरी दीवार की थी
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जलील मानिकपूरी
जुज़ बे-ख़ुदी गुज़र नहीं कू-ए-हबीब में,गुम हो गया जो मैं तो मिला रास्ता मुझे
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हफ़ीज़ जालंधरी
हाँ कैफ़-ए-बे-ख़ुदी की वो साअत भी याद है,महसूस कर रहा था ख़ुदा हो गया हूँ मैं
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मिर्ज़ा ग़ालिब
सर पा-ए-ख़ुम पे चाहिए हंगाम-ए-बे-ख़ुदी,रू सू-ए-क़िबला वक़्त-ए-मुनाजात चाहिए
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बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
छोड़ कर कूचा-ए-मय-ख़ाना तरफ़ मस्जिद के,मैं तो दीवाना नहीं हूँ जो चलूँ होश की राह
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