Urdu Shayari:इतना बेदारियों से काम न लो, दोस्तो ख़्वाब भी ज़रूरी है
ख़्वाब
ख़्वाब में नाम तिरा ले के पुकार उठता हूँ, बे-ख़ुदी में भी मुझे याद तिरी याद की है
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पुकारते हैं
किसी को ख़्वाब में अक्सर पुकारते हैं हम, अता इसी लिए सोते में होंट हिलते हैं
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गहराई
लगता है इतना वक़्त मिरे डूबने में क्यूँ, अंदाज़ा मुझ को ख़्वाब की गहराई से हुआ
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देखना
फिर नई हिजरत कोई दरपेश है, ख़्वाब में घर देखना अच्छा नहीं
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भागते रहे
सोने से जागने का तअल्लुक़ न था कोई, सड़कों पे अपने ख़्वाब लिए भागते रहे
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महताब
मुझे इस ख़्वाब ने इक अर्से तक बे-ताब रक्खा है, इक ऊँची छत है और छत पर कोई महताब रक्खा है
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मंज़िल
नहीं अब कोई ख़्वाब ऐसा तिरी सूरत जो दिखलाए, बिछड़ कर तुझ से किस मंज़िल पर हम तन्हा चले आए
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तशरीफ़
हम बुलाते वो तशरीफ़ लाते रहे,ख़्वाब में ये करामात होती रही
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