Urdu Shayari:इतना बेदारियों से काम न लो, दोस्तो ख़्वाब भी ज़रूरी है


2024/07/12 13:51:57 IST

ख़्वाब

    ख़्वाब में नाम तिरा ले के पुकार उठता हूँ, बे-ख़ुदी में भी मुझे याद तिरी याद की है

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पुकारते हैं

    किसी को ख़्वाब में अक्सर पुकारते हैं हम, अता इसी लिए सोते में होंट हिलते हैं

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गहराई

    लगता है इतना वक़्त मिरे डूबने में क्यूँ, अंदाज़ा मुझ को ख़्वाब की गहराई से हुआ

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देखना

    फिर नई हिजरत कोई दरपेश है, ख़्वाब में घर देखना अच्छा नहीं

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भागते रहे

    सोने से जागने का तअल्लुक़ न था कोई, सड़कों पे अपने ख़्वाब लिए भागते रहे

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महताब

    मुझे इस ख़्वाब ने इक अर्से तक बे-ताब रक्खा है, इक ऊँची छत है और छत पर कोई महताब रक्खा है

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मंज़िल

    नहीं अब कोई ख़्वाब ऐसा तिरी सूरत जो दिखलाए, बिछड़ कर तुझ से किस मंज़िल पर हम तन्हा चले आए

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तशरीफ़

    हम बुलाते वो तशरीफ़ लाते रहे,ख़्वाब में ये करामात होती रही

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