मिरे हाथों से लग कर फूल मिट्टी हो रहे हैं...पढ़ें तहजीब हाफी शायरी...


2024/02/20 18:24:51 IST

आग तापता हो

    कोई कमरे में आग तापता हो, कोई बारिश में भीगता रह जाए

मज़ार बने और दिया जले

    क्या मुझ से भी अज़ीज़ है तुम को दिए की लौ, फिर तो मेरा मज़ार बने और दिया जले

मेरी नक़लें उतारने लगा है

    मेरी नक़लें उतारने लगा है, आईने का बताओ क्या किया जाए

नींद ऐसी कि रात कम पड़ जाए

    नींद ऐसी कि रात कम पड़ जाए, ख़्वाब ऐसा कि मुँह खुला रह जाए

हम-सफ़र रोता न था

    मुझ पे कितने सानहे गुज़रे पर इन आँखों को क्या, मेरा दुख ये है कि मेरा हम-सफ़र रोता न था

मैं इधर भी हूँ और उधर भी

    आसमाँ और ज़मीं की वुसअत देख, मैं इधर भी हूँ और उधर भी हूँ

खोने के वसवसे रहेंगे

    तुझ को पाने में मसअला ये है, तुझ को खोने के वसवसे रहेंगे

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