गला तो घोंट दिया अहल-ए-मदरसा ने तिरा..पढ़ें अल्लामा इक़बाल के शेर...
निगह पाक
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है, फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है
सिखा रक्खा
उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को, ये हज़रत देखने में सीधे-सादे भोले-भाले हैं
ज़माने
फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं, क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं
ढूँढता था
जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में, वो निकले मेरे ज़ुल्मत-ख़ाना-ए-दिल के मकीनों में
जुदाई
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं, मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में
इश्क़
बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़, अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी
औक़ात
तू क़ादिर ओ आदिल है मगर तेरे जहाँ में, हैं तल्ख़ बहुत बंदा-ए-मज़दूर के औक़ात
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