पेश है जिंदगी पर कुछ चुनिंदा शेर
शहर
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं, सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
याद
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
आहट
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं,
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
ज़िंदगी
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं,
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
कशमकश-ए-ज़िंदगी
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम,
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
ज़िंदगी
यूँ तो मरने के लिए ज़हर सभी पीते हैं,
ज़िंदगी तेरे लिए ज़हर पिया है मैं ने
ज़िंदगी
ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम,
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते
इलाज
मौत का भी इलाज हो शायद,
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं
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