सजाओ बज़्म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो..पढ़ें फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के शेर..
मय-ख़ाना सलामत है तो
मय-ख़ाना सलामत है तो हम सुर्ख़ी-ए-मय से, तज़ईन-ए-दर-ओ-बाम-ए-हरम करते रहेंगे
हरीम में गेसू सँवरने लगते हैं
हदीस-ए-यार के उनवाँ निखरने लगते हैं, तो हर हरीम में गेसू सँवरने लगते हैं
वक़ार-ए-दस्त-ए-दुआ गया
जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए, वो नशात-ए-आह-ए-सहर गई वो वक़ार-ए-दस्त-ए-दुआ गया
साज़-ए-सदा क्यूँ नहीं देते
हाँ नुक्ता-वरो लाओ लब-ओ-दिल की गवाही, हाँ नग़्मागरो साज़-ए-सदा क्यूँ नहीं देते
मद्धम हुआ हर साज़ का रंग
चंग ओ नय रंग पे थे अपने लहू के दम से, दिल ने लय बदली तो मद्धम हुआ हर साज़ का रंग
सारी दुनिया से दूर हो जाए
सारी दुनिया से दूर हो जाए, जो ज़रा तेरे पास हो बैठे
बहुत मिला न मिला ज़िंदगी से ग़म
बहुत मिला न मिला ज़िंदगी से ग़म क्या है, मता-ए-दर्द बहम है तो बेश-ओ-कम क्या है
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