तेरी ख़ुशबू का पता करती है.. पढ़िए परवीन शाकिर के चुनिंदा शेर...
बिछड़ते
मिलते हुए दिलों के बीच और था फैसला कोई, उसने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया
हिज्र
मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था, हम ने तो एक बात की उस ने कमाल कर दिया
आज़ाद
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं, देखना ये है खेंचता है मुझपे पहला तीर कौन
एहसान
तेरी ख़ुशबू का पता करती है, मुझपे एहसान हवा करती है
आसाँ
यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर, जाते जाते उस का वो मुड़ कर दोबारा देखना
गुज़र
कुछ फैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए, पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए
आइने
आइने की आँख ही कुछ कम न थी मेरे लिए, जाने अब क्या क्या दिखाएगा तुम्हारा देखना
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