हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम..पढ़ें अकबर इलाहाबादी की शायरी
इश्क़
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद, अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
तलबगार
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ, बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ
हसीनों
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना, हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना
हँस
जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर, हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है
अक़्ल
मज़हबी बहस मैंने की ही नहीं, फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
इबादत
रहता है इबादत में हमें मौत का खटका, हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं कर ले न ख़ुदा याद
अकबर
अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से, लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से
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