ग़ालिब के इन चुनिंदा शेरों से करें इश्क का इजहार
इम्तहां
यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं, अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो
हक़ीक़त
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है
रौनक
उनको देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक, वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है
आतिश
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब, कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
एतबार
तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना, कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता
ख़ुदा
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता, डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता !
गम
हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का, ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता!
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