हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है..पढ़ें अल्लामा इक़बाल के शेर...


2024/01/15 22:50:33 IST

सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी

    अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी, तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन

जन्नत

    इल्म में भी सुरूर है लेकिन, ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं

ताक़त-ए-परवाज़

    दिल से जो बात निकलती है असर रखती है, पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है

तन्हा

    अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल, लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे

पहाड़ों

    नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर, तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में

ज़माने

    हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी, ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़

मुसलमान

    हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक, कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक

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