हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है..पढ़ें अल्लामा इक़बाल के शेर...
सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी, तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
जन्नत
इल्म में भी सुरूर है लेकिन, ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं
ताक़त-ए-परवाज़
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है, पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
तन्हा
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल, लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
पहाड़ों
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर, तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में
ज़माने
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी, ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़
मुसलमान
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक, कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक
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