बंद कर के मिरी आँखें वो शरारत से हंसे..पढ़ें परवीन शाकिर के चुनिंदा शेर..
आसमान
रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था, ज़मीन ले ली मगर आसमान छोड़ गया
मोर
तिरी चाहत के भीगे जंगलों में, मिरा तन मोर बन कर नाचता है
दिल
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल, बहाने से मुझे भी टालता है
ज़िंदगी
ज़िंदगी मेरी थी लेकिन अब तो, तेरे कहने में रहा करती है
ख़ुशनुमा
रफ़ाक़तों के नए ख़्वाब ख़ुशनुमा हैं मगर, गुज़र चुका है तिरे एतिबार का मौसम
अमीर
वो मेरे पाँव को छूने झुका था जिस लम्हे, जो माँगता उसे देती अमीर ऐसी थी
मंज़िल
बे-नाम मसाफ़त ही मुक़द्दर है तो क्या ग़म, मंज़िल का तअय्युन कभी होता है सफ़र से
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