सगी बहनों का जो रिश्ता है उर्दू और हिन्दी में...पढ़ें मुनव्वर राना के शेर


2024/01/23 17:07:03 IST

मुख़्तसर

    मुख़्तसर होते हुए भी ज़िंदगी बढ़ जाएगी...माँ की आँखें चूम लीजे रौशनी बढ़ जाएगी

तस्वीर

    दोहरा रहा हूँ बात पुरानी कही हुई...तस्वीर तेरे घर में थी मेरी लगी हुई

किताबें

    मैं ने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दें...सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़-ए-माँ रहने दिया

क़र्ज़

    ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता...मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है

आँखें

    हँस के मिलता है मगर काफ़ी थकी लगती हैं...उस की आँखें कई सदियों की जगी लगती हैं

बच्चों

    मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी...तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई

बच्चों

    मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी...तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई

शहर

    तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते...हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं

दुनिया

    सगी बहनों का जो रिश्ता है उर्दू और हिन्दी में...कहीं दुनिया की दो ज़िंदा ज़बानों में नहीं मिलता

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